हौसलों की बैसाखी से
हर मंज़िल को पार किया है
दया-सहानुभूति को
हरदम दर किनार किया है
जब-जब घिरे बादल विपत्ति के
बिजलियाँ चमकीं विचलन की
ख़ुद को मैंने धारदार किया है
बाधाओं को परास्त करता गया
बीज सफलता के बोता गया
भय के काँटों को लाचार किया है
गिरा नहीं , लड़खड़ाया नहीं
इरादा कभी मेरा डगमगाया नहीं
जीवन सुनामी को पार किया है
किया सदैव साहस का आलिंगन
धैर्य का उपवन सजाया है
संघर्षों का मैंने श्रृंगार किया है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Comment
बहुत -बहुत आभार आदरणीय बृजेश कुमार जी ।
बड़ी ही अच्छी और सार्थक कविता हुई आदरणीय आरिफ जी..सादर
रचना पर दो-दो प्रतिक्रिया देकर मान बढ़ाने और हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत आभार आदरणीय विजय निकोर जी ।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ अहमद जी ।
हौसला अफज़ाई का बहुत-बहुत शुक्रिया आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब । आपकी इस्लाह सर आँखों पे ।
//हौसलों की बैसाखी से
हर मंज़िल को पार किया है//
यह भाव बहुत ही छू गया। आपकी कविताओं में आकृषण है... । प्रतिक्रिया दे चुका था, सोचा यह भी कह दूँ।
मुहतरम जनाब आरिफ साहिब आदाब , बहुत ही सुन्दर कविता हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
अति सुन्दर रचना..आन्नद आ गया। हार्दिक बधाई, भाई मोहम्मद आरिफ़ जी।
जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,बहुत उम्दा कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
छटी पंक्ति में 'चमकी' को "चमकीं" कर लें ।
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