अस्तित्व ....
एक अस्तित्व
शून्य हुआ
एक शून्य
अस्तित्व हुआ
धूप-छाँव के बंधन का
हर एक सूरज
अस्त हुआ
ज़िंदगी ज़मीन की
ज़मीन के पार
चलती रही
और
दूर कहीं
कोई चिता
धू-धू कर
जलती रही
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद. KALPANA BHATT ('रौनक़') जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का आभारी है।
आदरणीय vijay nikore जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का आभारी है।
आदरणीय narendrasinh chauhan जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का आभारी है।
बहुत सुन्दर रचना | हार्दिक बधाई आदरणीय |
आदरणीय सोमेश कुमार जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का आभारी है। ये दार्शनिक भाव क्षणिका की प्रस्तुति है।
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