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अस्तित्व ....

एक अस्तित्व
शून्य हुआ
एक शून्य
अस्तित्व हुआ
धूप-छाँव के बंधन का
हर एक सूरज
अस्त हुआ
ज़िंदगी ज़मीन की
ज़मीन के पार
चलती रही
और
दूर कहीं
कोई चिता
धू-धू कर
जलती रही

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on February 15, 2018 at 4:52pm

आद. KALPANA BHATT ('रौनक़')   जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on February 15, 2018 at 4:52pm

आदरणीय  vijay nikore  जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on February 15, 2018 at 4:51pm

आदरणीय  narendrasinh chauhan जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का आभारी है।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 13, 2018 at 7:09pm

बहुत सुन्दर रचना | हार्दिक बधाई आदरणीय |

Comment by narendrasinh chauhan on February 12, 2018 at 9:44pm
खुब सुन्दर रचना
Comment by Sushil Sarna on February 12, 2018 at 4:02pm


आदरणीय सोमेश कुमार जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का आभारी है। ये दार्शनिक भाव क्षणिका की प्रस्तुति है।

Comment by somesh kumar on February 12, 2018 at 10:33am
यह किसी पीड़ा का दृश्य लगता है क्या इसे दृश्य कविता कह सकते हैं ?

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