तुम्हारी कसम....
हिज़्र की रातों में
तन्हा बरसातों में
खामोश बातों में
नशीली मुलाकातों में
तुम्हारी कसम
सिर्फ़
तुम ही तुम हो
चांदनी के शबाब में
पलकों के ख्वाब में
प्यालों की शराब में
अर्श के माहताब में
तुम्हारी कसम
सिर्फ़
तुम ही तुम हो
ख्यालों की बाहों में
बेकरार निगाहों में
गुलों की अदाओं में
आफ़ताबी शुआओं में
तुम्हारी कसम
सिर्फ़
तुम ही तुम हो
साँसों के ऐतबार में
आती हुई बहार में
मिलन के करार में
वस्ल के इंतज़ार में
तुम्हारी कसम
सिर्फ़
तुम ही तुम हो
(शुआओं= किरणें )
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीया रक्षिता जी आदाब,
आदरणीय सुशील सरना जी की रचना पर मेरी प्रतिक्रिया पर अपनी उत्साहवर्धक टिप्पणी देने का बहुत-बहुत शुक्रिया । यह मेरा सबसे बड़ा सौभाग्य है ।
आदरणीय आरिफ जी,
सुशील जी रचना पर आपके द्वारा दी गयी बहुत ही लाजबाब प्रतिक्रिया....बहुत खूब।
आदरणीय सुशील जी नमस्कार।
खूबसूरत अंदाज में लिखीं बेहतरीन पंक्तियाँ... पढ़कर मजा आ गया। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आपकी क़सम बहुत बेहतरीन है
ताज़ा तरीन है
मेहज़बीन है
ख़्याल महीन है
पढ़ रहे नाज़रीन है
आपकी क़सम
लाजवाब है
खुली किताब है
क्या ख़ूब शबाब है
बहुत लिखते जनाब है
आपकी क़सम
पढ़ने की रहती हसरत है
चलती लफ्ज़ों की शरारत है
कुछ-कुछ देती हिदायत है
लेकिन मेरी होती क़यामत है
कुछ- कुछ रहती शिकायत है
सच है रहती लियाकत है
आपकी ये सखावत है
पढ़ना मेरी आदत है
हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सुशील सरना जी ।
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