माँ शब्द पर २ क्षणिकाएं :
1.
मैं
जमीं थी
आसमाँ हो गयी
एक पल में
एक
जहाँ हो गयी
अंकुरित हुआ
एक शब्द
और मैं
माँ हो गयी
...........................
२.
ज़िंदा रहते हैं
सदियों
फिर भी
लम्हे
बेज़ुबाँ होते हैं
छोड़ देती हैं
साथ
साँसें
जब ज़िस्म
फ़ना होते हैं
ज़िंदगी
को जीत लेते हैं
मौत से
जो शब्द
वो
माँ होते हैं
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत सुन्दर..क्या ही शानदार ढंग से माँ की महिमा का बखान किया है आदरणीय..बधाई
आदरणीय समर कबीर साहिब आपकी उदारता का हार्दिक आभार।
क्षमा मांग कर शर्मिंदा न करें,हम सब एक ही परिवार के सदस्य हैं भाई ।
आदरणीया नीलम उपाध्याय जी सृजन के भावो को अपनी स्नेहिल प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार।
आदरणीया नीलम जी मैं आपकी बात से सहमत हूँ। आज की व्यस्ततम जीवन शैली में सृजन के भावों को ज़िंदा रखना किसी चुनौती से कम नहीं। आपकी पारिवारिक परिस्थितियां, उत्तरदायित्वों का निरंतर बढ़ता बोझ , उम्र की व्याधियां ,सभी कुछ तो आपको घेरे रहता है फिर भी जितना भी सम्भव होता है , हम मंच पर सक्रिय रहने का प्रयास करते हैं। सृजन आसान नहीं इन विपरीत परिस्थितियों में। एक शेर अर्ज़ है : आँख से आँसू न बहें , रोने का इक ये भी अंदाज़ होता है।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।
आदरणीय हर्ष महाजन जी सृजन के भावों को आत्मीय स्नेह देने का दिल से आभार।
आदरणीय समर कबीर साहिब , आपके इस आत्मीय स्नेह का हार्दिक आभार। आपने मानवीय व्यस्तताओं आंका, हार्दिक आभार। आदरणीय मो.आरिफ साहिब के टिप्पणी में कुछ चुभा तो कह दिया , आपके स्नेह शब्दों से सब कुछ मिटा दिया। मैं आप दोनों की मन से इज़्ज़त करता हूँ। कुछ उम्र पाई है ,सो ऐसी बातों की खराशें चुभन छोड़ती हैं। कोई बात नहीं , हो जाता है कभी कभी। ये मंच मैं अपना मानता हूँ , आप सब साहिबान को अपना मानता हूँ। मेरे कारण आपको या आदरणीय मो.आरिफ साहिब को मेरी कोई बात अप्रिय लगी हो तो मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ।
आप सभी आदरणीय मुझे क्षमा करें । अर्ज करती हूँ कि हम सभी रचना धर्मिता के विद्यार्थी हैं । सभी की सृजनात्मक क्षमता एक जैसी नहीं है । और है भी तो हम हमेशा एक जैसी मनःस्थिति में नहीं रहते । फिर मंच पर उपस्थिती की सभी की अपनी अपनी परिस्थितियाँ हैं । आज की जीवन शैली बहुत ही फास्ट है । कौन कब किस तरह के मनोभाव से गुजर रहा है, मालूम नहीं । यहाँ तक कि स्वयं को भी कई बार अपनी असामान्य स्थिति का पता नहीं चलता । मैं स्वयं मंच पर बहुत अनुपस्थित रहती हूँ । लेकिन स्वयं को बहुत भाग्यशाली मानती हूँ कि मेरी इस कमी को आप सभी गुणी जन अनदेखा कर मेरी साधारण सी रचना पर भी इतना प्यार, सम्मान और मार्गदर्शन देते हैं । यह सब इसी मंच पर संभव है ।
बहुत खूब..
आदरणीय सुशील सरना जी, नमस्कार । माँ के अस्तित्व पर बहुत ही उम्दा रचना । बधाई ।
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