For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ शब्द पर २ क्षणिकाएं :

माँ शब्द पर २ क्षणिकाएं :

1.

मैं
जमीं थी
आसमाँ हो गयी

एक पल में
एक
जहाँ हो गयी

अंकुरित हुआ
एक शब्द
और मैं
माँ हो गयी

...........................

२.

ज़िंदा रहते हैं
सदियों
फिर भी
लम्हे
बेज़ुबाँ होते हैं

छोड़ देती हैं
साथ
साँसें
जब ज़िस्म
फ़ना होते हैं

ज़िंदगी
को जीत लेते हैं
मौत से
जो शब्द
वो

माँ होते हैं

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 904

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 14, 2018 at 4:53pm

बहुत सुन्दर..क्या ही शानदार ढंग से माँ की महिमा का बखान किया है आदरणीय..बधाई

Comment by Sushil Sarna on March 13, 2018 at 6:40pm

आदरणीय समर कबीर साहिब आपकी उदारता का हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on March 13, 2018 at 5:53pm

क्षमा मांग कर शर्मिंदा न करें,हम सब एक ही परिवार के सदस्य हैं भाई ।

Comment by Sushil Sarna on March 13, 2018 at 4:59pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी सृजन के भावो को अपनी स्नेहिल प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार।
आदरणीया नीलम जी मैं आपकी बात से सहमत हूँ। आज की व्यस्ततम जीवन शैली में सृजन के भावों को ज़िंदा रखना किसी चुनौती से कम नहीं। आपकी पारिवारिक परिस्थितियां, उत्तरदायित्वों का निरंतर बढ़ता बोझ , उम्र की व्याधियां ,सभी कुछ तो आपको घेरे रहता है फिर भी जितना भी सम्भव होता है , हम मंच पर सक्रिय रहने का प्रयास करते हैं। सृजन आसान नहीं इन विपरीत परिस्थितियों में। एक शेर अर्ज़ है : आँख से आँसू न बहें , रोने का इक ये भी अंदाज़ होता है।

Comment by Sushil Sarna on March 13, 2018 at 4:58pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on March 13, 2018 at 4:57pm

आदरणीय हर्ष महाजन जी सृजन के भावों को आत्मीय स्नेह देने का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on March 13, 2018 at 4:45pm

आदरणीय समर कबीर साहिब , आपके इस आत्मीय स्नेह का हार्दिक आभार। आपने मानवीय व्यस्तताओं आंका, हार्दिक आभार। आदरणीय मो.आरिफ साहिब के टिप्पणी में कुछ चुभा तो कह दिया , आपके स्नेह शब्दों से सब कुछ मिटा दिया। मैं आप दोनों की मन से इज़्ज़त करता हूँ। कुछ उम्र पाई है ,सो ऐसी बातों की खराशें चुभन छोड़ती हैं। कोई बात नहीं , हो जाता है कभी कभी। ये मंच मैं अपना मानता हूँ , आप सब साहिबान को अपना मानता हूँ। मेरे कारण आपको या आदरणीय मो.आरिफ साहिब को मेरी कोई बात अप्रिय लगी हो तो मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ।

Comment by Neelam Upadhyaya on March 13, 2018 at 3:34pm

आप सभी आदरणीय मुझे क्षमा करें । अर्ज करती हूँ कि हम सभी रचना धर्मिता के विद्यार्थी हैं । सभी की सृजनात्मक क्षमता एक जैसी नहीं है । और है भी तो हम हमेशा एक जैसी मनःस्थिति में नहीं रहते । फिर मंच पर उपस्थिती की सभी की अपनी अपनी परिस्थितियाँ हैं । आज की जीवन शैली बहुत ही फास्ट है । कौन कब किस तरह के मनोभाव से गुजर रहा है, मालूम नहीं । यहाँ तक कि स्वयं को भी कई बार अपनी असामान्य स्थिति का पता नहीं चलता । मैं स्वयं मंच पर बहुत अनुपस्थित रहती हूँ । लेकिन स्वयं को बहुत भाग्यशाली मानती हूँ कि मेरी इस कमी को आप सभी गुणी जन अनदेखा कर मेरी साधारण सी रचना पर भी इतना प्यार, सम्मान और मार्गदर्शन देते हैं । यह सब इसी मंच पर संभव है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 13, 2018 at 3:19pm

बहुत खूब..

Comment by Neelam Upadhyaya on March 13, 2018 at 3:13pm

आदरणीय सुशील सरना जी, नमस्कार । माँ के अस्तित्व पर बहुत ही उम्दा रचना । बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service