11-02-2018 "मधुर" जी के स्मृति में भावभीनी श्रद्धाञ्जलि
छन्द विधा : शक्ति छंद
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कहां प्यार ऐसा मिलेगा कहीं,
हमारे सखा सा जहां में नहीं।
दिया प्यार इतना कि कर्जित हुए,
हुई आंख नम जो थे गर्वित हुए।
हमारा सभी का बड़ा भाग था,
अकल्पित उन्हीं पे झुका राग था।
"मधुर" जी में किंचित नहीं द्वेष था,
अकिंचन हुआ आज जो शेष था।
कहीं राग बिखरे कहीं रागिनी,
कृतियों में जो थी वही वागिनी।
तिया रागिनी आज कैसे बने,
सनी धूल में राग हैं सामने।
असिंचित जमीन है खुलाआसमाँ,
सभी आश का संघनन है थमा।
बिना दामिनी संघनित नेहा का,
अपूर्णीय रिक्ती हुआ मेह का।
न आगोश में ख्वाब ठहरा अभी,
ढहा रेत के भीत जैसा तभी,
मिली कीर्ति हाथों में आया जहाँ,
अभी थे फलक पे अभी हैं कहाँ ।
बड़ी गूढ़ राहें नयन मोड़ के
न जाने कहाँ खो गए छोड़ के
हताशा निराशा दिया टीस है,
इतना वो निष्ठुर कहाँ ईश है।
“विनोद” (मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आद0 शरद जी सादर अभिवादन। प्रयास उत्तम है, शेष गुणीजनों ने कह दिया है। सादर
आदरणीय शरद सिंह जी रचना पर प्रयास के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
बताना चाहूँगा कि आपकी रचना में तमाम शैल्पिक त्रुटियों के साथ-साथ कई बंदों के भाव भी उलझे हुए हैं। अतः रचना अभी पर्याप्त समय मांग रही है।
प्रथम छंद को लीजिये-कर्जित का क्या आशय लिया है आपने? छंदों में मात्रा पतन स्वीकार नही-हुई आँख नम जो थे** गर्वित हुए। थे पर मात्रा गिराई गई है।
इसी प्रकार दूसरे छंद में -मधुर जी में** किंचित......में पर मात्रा पतन है।
अकिंचन हुआ आज जो शेष था- इसमें आप क्या कहना चाहते हैं?
तीसरे छंद के द्वितीय पद के प्रारम्भ में ही शिल्प भंग है और वागिनी का क्या आशय लिया है आपने?
चौथे छंद में आसमाँ और थमा में तुकान्तता त्रुटिपूर्ण है। रिक्ति सही शब्द है। रिक्ती मने क्या आशय लिया है आपने?
मिली कीर्ति हाथों में***.....में पर मात्रा पतन दोषपूर्ण है।
बड़ी गूढ़ राहे नयन मोड़ के-क्या आशय लिया है आपने इस बंदिश में?
टीस और ईश में तुकान्तता दोषपूर्ण है।सादर
बहुत खूबसूरती से आपने भावी को व्यक्त किया है आदरणीय..सादर
जनाब "विनोद" जी आदाब, शक्ति छन्द पर आधारित 'मधुर'जी को अच्छी श्रद्धांजलि दी है आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
'असिंचित ज़मीन है खुला आसमाँ'
इस पंक्ति में मात्रा बढ रही है,इसे यूँ होना था :-
"असिंचत ज़मीं है खुला आसमाँ"
इसके अलावा दूसरी पंक्ति में 'आसमाँ' के साथ 'थमा' की तुकान्तता सही नहीं है,देखियेग ।
"बिना दामिनी संघनिन नेहा का'
इस पंक्ति के अंत में 12 की जगह 'हा का'22 हो रहा है ।
'अपूर्णीय रिक्ति हुआ मेह का'
इस पंक्ति की मात्राएँ देखें ।
'मिली कीर्ति हाथों में आया जहाँ'
इस पंक्ति की मात्राएँ भी चेक करें ।
'इतना वो निष्ठुर कहाँ ईश है'
इस पंक्ति की मात्राएँ भी चेक करें, और 'टीस' के साथ 'ईश' की तुकान्तता सही नहीं है,देखियेग ।
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