221 2121 1221 212
ढूढा हूँ मुश्किलों से सलामत गुहर को मैं।
समझा हूँ तेरे हुस्न के जेरो जबर को मैं ।।
यूँ ही नहीं हूं आपके मैं दरमियाँ खड़ा ।
नापा हूँ अपने पाँव से पूरे सफर को मैं ।।
मारा वही गया जो भला रात दिन किया ।।
देखा हूँ तेरे गाँव में कटते शजर को मैं ।।
मत पूछिए कि आप मेरे क्या नहीं हुए ।।
पाला हूँ बड़े नाज़ से अहले जिगर को मैं ।।
शायद तेरे वजूद की कोई खबर मिले ।
पढ़ता रहा हूँ आज तलक हर खबर को मैं ।।
कुछ तो करम हो आपका उल्फत के नाम पर ।
रक्खूँगा आप पर भी कहाँ तक नज़र को मैं ।।
इस फ़ासले के दौर में ऐसा न हो कभी ।।
तेरे पनाह गाह में तरसूं बसर को मैं ।।
देखा है जब से आपको होशो हवाश गुम ।
कितना नशा शराब में परखा असर को मैं ।।
मैं तो अना ए हुस्न पे हैरान हूँ बहुत ।
अब तक उठा सका नहीं परदा क़मर का मैं ।।
गुजरी तमाम उम्र यहां इंतजार में ।
बस देखता ही रह गया शामो सहर को मैं ।।
नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय कबीर सर सादर नमन । सबसे पहले आपके स्वस्थ रहने की दुआ करता हूँ । आपके बिना ओबीओ सूना हो जाता है । आपकी बात पर ध्यान देकर ग़ज़ल की री राइटिंग करूँगा । आपके जैसे उस्ताद दुर्लभ हैं ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, "ग़ालिब'की ज़मीन में ग़ज़ल का प्रयास अभी और समय चाहता है,कई अशआर में रदीफ़ से इंसाफ़ नहीं हो सका, कई अशआर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं पैदा हो सका, इस ज़मीन में फ़िल्म 'बरसात की रात'में 'साहिर की ग़ज़ल ज़रूर देखें,जिसका शैर है:-
'आई है उनके चाँद से चहरे को चूम कर
जी चाहता है चूम लूँ अपनी नज़र को मैं'
और उसके बाद फिर प्रयास करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online