2122 1122 22
छू के साहिल को लहर जाती है ।
रेत नम अश्क़ से कर जाती है ।।
सोचता हूँ कि बयाँ कर दूं कुछ ।
बात दिल में ही ठहर जाती है ।।
याद आने लगे हो जब से तुम ।
बेखुदी हद से गुजर जाती है ।।
कुछ तो खुशबू फिजां में लाएगी ।
जो सबा आपके घर जाती है ।।
कितनी ज़ालिम है तेरी पाबन्दी ।
यह जुबाँ रोज क़तर जाती है ।।
हुस्न को देख लिया है जब से ।
तिश्नगी और सवर जाती है।।
ढूढिये आप जरा शिद्दत से ।
दिल तलक कोई डगर जाती है ।।
कर गया जख्म की बातें कोई ।
रूह सुनकर ही सिहर जाती है ।।
जब भी फिरती हैं निगाहें उसकी ।
कोई तकदीर सुधर जाती है ।।
आशिकों तक वहाँ जाने कैसे ।
तेरे आने की ख़बर जाती है ।।
देख कर आपका लहजा साहिब ।
चोट मेरी भी उभर जाती है ।।
जब निकलता हूँ तेरे कूचे से ।
कोई सूरत तो निखर जाती है ।।
कोशिशें कर चुका हूँ लाखों पर ।
ये नज़र फिर भी उधर जाती है ।।
बे अदब हो गयी है याद तेरीे ।
बे सबब दिल में उतर जाती है ।।
जेब का हाल समझ कर अक्सर ।
आशिकी हम से मुकर जाती है ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 लक्ष्मण धामी साहब हार्दिक आभार
आ0 राम अवध विश्वकर्मा जी बह्र मुझे तो ठीक लग रही है । सम्भवतः 3 और 4 शेर का ओला दुरुस्त है ।
आदर्णीय त्रिपाठी जी खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिये बधाई। शेर नं 3 और 4 के ऊला मिसरा के बह्र को शायद एक बार पुन: अवलोकन करने की जरूरत है।
आदरणीय नवीन जी नमस्कार,
बहुत खूबसूरत गजल, बे अदब हो गयी है याद तेरी - बे सबब दिल में उतर जाती है।
मुबारकबाद कुबूल फरमायें।
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