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यूँ जिंदगी के वास्ते कुछ कम नहीं है वो ।
किसने कहा है दर्द का मरहम नहीं है वो।।

सूरज जला दे शान से ऐसा भी नहीं है ।
फूलों पे बिखरती हुई शबनम नहीं है वो ।।

बेचेगा पकौड़ा जो पढ़ लिख के चमन में ।
हिन्दोस्तां के मान का परचम नहीं है वो ।।

बेखौफ ही लड़ता है गरीबी के सितम से ।
शायद किसी अखबार में कालम नहीं है वो ।।

मेहनत की कमाई में लगा खून पसीना ।
अब लूटिए मत आपकी इनकम नहीं है वो ।।

तकदीर बना लेगा वो अपने ही करम से ।
इंसान की औलाद है बेदम नहीं है वो ।।

मजबूरियों के नाम पे खामोश बहुत है ।
मेरे किसी भी काम से बरहम नहीं है वो ।।

कोटे की सियासत से जरा बाज अभी आ ।
भारत की बुलन्दी का तो आगम नहीं है वो ।।

दो चार के बदले में हजारों को मिटा दे ।
खुलकर क़ज़ा दे सामने सक्षम नहीं है वो ।।

नापाक है दुश्मन तो सजा दीजिये भरपूर ।
कायर है अभी जंग का रुस्तम नहीं है वो।।

--नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 19, 2018 at 3:57pm

आ. भाई नवीन जी सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 19, 2018 at 11:32am

भाई बृजेश कुमार ब्रज जी सप्रेम आभार 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2018 at 10:45pm

एक और खूबसूरत ग़ज़ल आदरणीय..बहुतखूब

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 17, 2018 at 10:34am

आ0 शेख शहज़ाद साहब तहे दिल से शुक्रिया।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 16, 2018 at 2:54pm

हर शे'अर में दो टूक/सटीक/पते की बात कहती बेहतरीन पेशकश के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब नवीन मणि त्रिपाठी साहिब।

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