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ग़ज़ल : कुत्तों से सिंह मात जो खाएँ तो क्या करें.

ग़ज़ल : कुत्तों से सिंह मात जो खाएँ तो क्या करें.

बहने लगी हैं उल्टी हवाएँ तो क्या करें.

कुत्तों से सिंह मात जो खाएँ तो क्या करें.

 

वो ही लिखा है मैंने जो अच्छा लगा मुझे.

नासेह सर को अपने खपाएँ तो क्या करें.

 

जल्लाद हाथ में जब खंजर उठा चुका.

खौफे अजल न तब भी सताएँ तो क्या करें.

 

इल्मे-अरूज पर  पढ़ कर के लफ़्ज चार.   .

खारिज बहर ग़ज़ल को बताएँ तो क्या करें.

 

कह तो रहें आप कि रंजिश नहीं मगर.  

तेवर न आपके ये  जताएँ तो क्या करें.

 

उड़-उड़ तुम्हारी जुल्फ़ मचाती रही ग़दर.

डर-डर घटाएँ आँसू बहाएँ तो क्या करें.

 

हिन्दोस्तां है होश जरूरी तो जोश में.

बेबात जोश लोग दिखाएँ तो क्या करें.

गंगा धर शर्मा ' हिन्दुस्तान'

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2018 at 8:25pm

हार्दिक बधाई..

Comment by नाथ सोनांचली on February 27, 2018 at 8:04pm

आद0 गंगाधर जी सादर अभिवादन। बढिया ग़ज़ल का प्रयास और आद0 समर साहब की इस्लाह के बाद और निखर गयी है। बहुत बहुत बधाई आपको। सादर

Comment by Samar kabeer on February 26, 2018 at 10:07pm

जनाब गंगा धर शर्मा 'हिन्दोस्तान' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतला अच्छा लगा ।

दूसरे शैर के सानी मिसरे में 'नासेह'221 ग़लत है,सही शब्द है "नासिह"22,इसलिये सानी मिसरा यूँ कर लें तो उचित होगा:-

'आक़िल अब अपने सर को खपाएँ तो क्या करें'

'जल्लाद हाथ में जब ख़ंजर उठा चुका

ख़ौफ़े अजल न तब भी सताएँ तो क्या करें'

इस शैर के ऊला मिसरे की लय भंग है, और सानी मिसरे में 'ख़ौफ़े अजल' एक वचन है और क़ाफ़िया 'सताएँ' बहुवचन है, इस शैर को उचित लगे तो यूँ कर लें :-

'जल्लाद अपने हाथ में ख़ंजर उठा चुका

इस वक़्त भी वो ख़ौफ़ न खाएँ तो क्या करें'

'इल्मे-अरुज पर पद कर के लफ़्ज़ चार

ख़ारिज बहर ग़ज़ल को बताएँ तो क्या करें'

इस शैर के ऊला मिसरे की लय भंग है, और सानी मिसरे में 'बहर'ग़लत है सही शब्द है "बह्र",अगर आपको उचित लगे तो इस शैर को यूँ कर लें :-

'पढ़ कर के चार लफ़्ज़ वो इल्मे अरूज़ के

ख़ारिज ग़ज़ल की बह्र बताएँ तो क्या करें'

वैसे ये व्यंग आपने किस पर किया है,बता सकते हैं?

'कह तो रहें आप कि रंजिश नहीं मगर'

ये मिसरा बह्र से ख़ारिज है, इसे यूँ कर सकते हैं :-

'कह तो रहे हैं आप कि रंजिश नहीं मगर'

'डर-डर घटाएँ आँसू बहाएँ तो क्या करें'

व्याकरण की दृष्टि से ये मिसरा यूँ होना चाहिए:-

'डर कर घटाएँ अश्क बहाएँ तो क्या करें'

मक़्ता ठीक है ।

मंच के नियमानुसार आपने ग़ज़ल के साथ अरकान नहीं लिखे हैं?

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