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होरी खेलें लखनौआ , गंज माँ होरी खेलें लखनौआ

कुर्ता पहिन पजामा पहनिन, सुरमा लग्यो निराला

अच्छे-अच्छे रंग छांड़ि के रंग पुताइन काला

खाक छानि कै गली-गलिन कै मस्त लगावें पौआ

गंज माँ होरी खेलें लखनौआ

 

चौराहन पर मटकी फोरें भर मारें पिचकारी

फगुआ गावैं बात-बात पर मुख से निकसै गारी

भौजी तो हैं भारी भरकम देवर हैं कनकौआ

गंज माँ होरी खेलें लखनौआ

 

गली -मुहल्ले के लड़के हैं सब लखनौआ बाँके

प्यासी आँखों से तिरिया के अंतर्तन माँ झाँके

ऊपर तो है ठाठ नवाबी अंदर से हैं कौआ

गंज माँ होरी खेलें लखनौआ

 

रंग-तरंग अजब कुछ ऐसी हुरियारन कै बाढी

एक नवाब परे नरिया माँ, खूसट ह्वैगे दाढी

बने हजामत कैसे अब तो ढूंढें मिले न नौआ

गंज माँ होरी खेलें लखनौआ

 

कैसे-कैसे हरिणाकश्यप आज अबै लग ज़िंदा

केहिमा है ताकत जो उनकी रंचु कर सकै निंदा

कैसे उन्हें जलाओगे जो बड़े बड़े हैं खौआ ?

गंज माँ होरी खेलें लखनौआ

 

 (मौलिक/अप्रकाशित )

 

 

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Comment

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Comment by vijay nikore on March 3, 2018 at 3:03pm

आपकी रचना पढ़ने में अच्छी लगी। आपको यहाँ देखने का सुख भी मिला, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 3, 2018 at 8:37am

मुहतरम जनाब गोपाल नारायण भाई साहिब ,बहुत ही सुन्दर होली गीत हुआ है । अजमेर में रहते हुए अपने इलाके की होली का आनंद आ गया ,मेरी तरफ से इस प्रस्तुति और होली की मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on March 2, 2018 at 11:03pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी सादर अभिवादन सहज और आम बोल चाल की बोली में आपकी रचना अच्छी लगी मन प्रसन्न हुआ बधाई कुबूल कीजिये 

Comment by Mohammed Arif on March 2, 2018 at 10:28pm

आदरणीय गोपाल नारायण जी आदाब,

                               आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की बात को स्वीकार करते हुए मुझे भी यह गीत कुछ समझ में आया और कुछ समझ में नहीं आया । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on March 2, 2018 at 10:01pm

जनाब डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी आदाब,कुछ समझ में आया कुछ नहीं आया,लेकिन आपका गीत पढ़कर आनन्द बहुत आया,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

आपको होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ।

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