खोया बच्चा
हिन्दू घर से खोया बच्चा
माँ मम्मी कह रोया बच्चा
गुरूद्वारे का लंगर छक कर
मस्जिद में जा सोया बच्चा |
गली मोहल्ला ढूंढ रहा था
उसकों घर घर थाने थाने
दीवारें सब हाँफ रहीं थीं
नींव लगी थी उन्हें बचाने |
खुली नींद फिर वो भागा
एक पग में दस डग नापा
थक हार देखी एक बस्ती
निकली चर्च से हँसती अंटी |
“तुम शायद घर भूल गया है !
चलों तुम्हें घर से मिलवाऊँ
था मेरा भी तुम जैसा बेबी
चलों तुम्हें तस्वीर दिखाऊँ ! "
ताजमहल से उस घर में
दीवारों पर तस्वीर लगी थी
बच्चे के सिर पे हाथ फेरकर
मदर मारिया बिलख रही थी |
नहीं मानता था मजहब को
लव-जेहादी कह कर इसको
मार गए इसे गैर-ईसाई
इस बुढ़िया पे दया ना आई !
हुआ कुछ दिन हंगामा भारी
आते रहे सियासी बारी-बारी
अख़बारों ने भी तस्वीर उतारी
ना सूखी नफरत की फुलवारी |
बेटा तुम लगते हो राह भटके
इससे पहले कोई गिद्ध झपटे
चलो चलें हम थाने झट से
मरिया बोली उससे लिपट के
आजी क्यों तुम बिलख रही हो
बीबी अपणे आँसू पोछों
ग्रैनी दुनियाँ बहुत बड़ी है
देखों मुझकों तस्वीर यहीं है
मेरे दादा पंजाबी दादी नेपाली
मेरी बुआ को भाया बंगाली
एक क्रिस्चन को ब्याहे चाचा
हरिजन अम्मा ले आए पापा
घर में देखा है भारत जीता
पढ़ी कुरान के संग गीता
ईद दीवाली सब साथ मनाते
लंगर छक कर चर्च में जाते |
बने चिकन संग इडली सांभर
खाता झालमुरी मुठ्ठी भर-भर
बाई आंटी ले आती निमोना
सरसों दा साग लगदा सोणा |
सब धर्मों का सार है पाया
मुझे सियासत बाँट ना पाया
माँ मुझमें हिंदुस्तान बसा है
सब इंसानों का ईमान बचा है
“मत समझों मुझे खोया बच्चा
ना पहुँचाओं दादी मुझे थाने
मैं इंसानों का खोया बच्चा हूँ
निकला हूँ हिन्दुस्तान बचाने |”
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )
Comment
रचना को स्नेह एवं आशीष देने के लिए आप सभी गुणीजन का आभार .रचना लिखते समय मेरा झुकाव प्राय भावपक्ष पर होता है.इंसानी जीवन की सम्वेदनाओं,सुख दुःख तथा जो चीज़े विचलित करती है उन्हें ही रचने का प्रयास रहता है.इसलिए मैं कभी ये तय नहीं कर पाता हूँ कि किस छंद,या बहर में रचना-कार्य हुआ है.वस्तुतः मैं स्वयं महसूस करता हूँ कि मेरा झुकाव गद्य-साहित्य एवं उनमें भी लम्बी कहानियों की तरफ होता है.आप सभी गुणीजन जहाँ गागर में सागर समेटने की कोशिश करते हैं मैं विचारों की नदी को सागर तक ले जाने का प्रयास करता हूँ .कोशिश करूँगा कि आप लोगों के सुझाव आगे अमल में ला सकूँ |
नेक इरादों, जज़्बातों और संदेशों से परिपूर्ण बढ़िया रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब सोमेश कुमार साहिब। यदि यह रचना किसी छंद पर आधारित है तो सबसे ऊपर उसका उल्लेख करना चाहिए और यदि नहीं तो इसे सम्पादित करते हुए किसी छंद पर आधारित बनाने से रचना का प्रभाव बढ़ाया जा सकता है।
जनाब सोमेश कुमार जी आदाब,बहुत उम्दा रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय सोमेश जी आदाब,
एक बाल कविता के माध्यम से आपने सभी धर्मावलंबियों के बीच अच्छा सामंजस्य बैठाने का प्रयास किया है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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