मुक्तक
(आम आदमी)
1.सारी फिक्रें अभी उलझी हुईं हैं एक सदमें में
मैं मर जाऊँ तो क्या !मैं खो जाऊँ तो क्या !
2.मैं रोज़ मरता हूँ कोई हंगामा नहीं होता
सब सदमानसी है मुमताज़ की खातिर |
(इस्तेमाल )
3.खम गज़ल लिखता हूँ दिल तोड़ कर उसका
हुनर ज़ीना चढ़ता है बुलंदी हासिल होती है |
(वापसी )
4.शराब ने टूटकर घर का पानी गंगा कर दिया
उसने कपड़े उतारे मेरी सोच को नंगा कर दिया |
(नियन्त्रण)
5.तड़प के देखता है यूँ कि अरमां मचल जाएँ
पर कसम याद आते ही ख़ुद को जज़्ब करता हूँ |
(सजा )
6.मायूस हो चलीं हैं थीं मगरूर जो आँखे
सोचता हूँ अब सताना छोड़ दूँ इनकों |
(मोहब्बत )
8.गिरे फूल उठा कर रख दिए थे हथेली पर
आज महकी हुई मोहब्बत किताबों में मिली |
9.मिट्टी भी कटती है पानी भी समाता है
एक अजनबी बारिश सा चला आता है |
(बच्चा )
10 बच्चे के हाथ में अख़बार है
खबर भी उससी मासूम हो जाए
गम नफ़रत उदासी मुस्कारा रहे
वो बेवजह हँसी भी मशहूर हो जाए |
सोमेश कुमार(मौलिक एवं अमुद्रित )
Comment
बहुत उम्दा क्षणिकाएं हैं सभी एक से बढ़कर एक आद० सोमेश जी हार्दिक बधाई आपको
किन्तु ये मुक्तक कि श्रेणी में नहीं आती
इनको क्षणिकाएँ या इस तरह तीन पंक्तियों में बढ करके आसानी से त्रिवेणी में ढाल सकते हैं जैसे मैंने नीचे कोशिश की है
सारी फिक्रें अभी उलझी हुईं हैं एक सदमें में
मैं मर जाऊँ तो क्या !
मैं खो जाऊँ तो क्या !
.मैं रोज़ मरता हूँ कोई हंगामा नहीं होता
सब सदमानसी है
मुमताज़ की खातिर |
खम गज़ल लिखता हूँदिल तोड़ कर उसका
हुनर ज़ीना चढ़ता है
बुलंदी हासिल होती है |
गुलज़ार साहब कि त्रिवेणियाँ पढ़ें आपको समझ आ जायेंगी
गुणीजनों का रचना पर drishti dalne ke lie saadhuvaad.कृपया margdarshn den ki is trh ki rchna kis kshrni me आएंगी
भाव पक्ष अच्छा है पर कला पक्ष नदारत है । गुणी जनों से राय लें ।
जनाब सोमेश कुमार जी आदाब,ये रचना मुक्तक नहीं,और जो भी है वो लयबद्ध नहीं ।
आदरणीय सोमेश जी आदाब,
आपने 'मुक्तक' शीर्षक से कुल 10 रचनाएँ लिखी है लेकिन ये सभी रचनाएँ मुक्तक की श्रेणी में नहीं आती है । मुक्तक चार पंक्तियों का होता है । शुरू की दो पंक्तियों में तुकांतता होती है , तीसरी पंक्ति में तुकांतता नहीं है और फिर चौथी पंक्ति में तुकांतता होती है । साथ में लयात्मकता भी अनिवार्य है ।
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