2122 2122 212
धूप का विस्तार लगाकर सो गए
छांव सिरहाने दबाकर सो गए
oo
ज़िंदगी से थक-थका कर सो गए
वो चराग़-ए-जाँ बुझा कर सो गए
oo
गुफ़्तगू की दिल मे ख़्वाहिश थी मगर
वो मेरे ख़्वाबों में आकर सो गए
oo
तंग थी चादर तो हमने यूँ किया
पांव सीने से लगाकर सो गए
oo
उनकी नींदों पर निछावर मेरे ख़ाब
जो ज़माने को जगाकर सो गए
oo
बे-कसी में और क्या करते 'रज़ा'
ख़ुद को ही समझा-बुझा कर सो गए
________________________
मौलिक व अप्रकाशित
बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
Comment
यहाँ रचना पर चर्चा होने से हम जैसे न जाने कितने सीखने वाले लाभान्वित होते हैं, शायद आपको इस बात का इल्म नहीं है, अन्यथा इतने दिन से आप मंच से जुड़े हैं, कम से कम इस तरह की भाषा का उपयोग न करते। सादर
आद0 सलीम साहब सादर अभिवादन। आपकी टिपण्णी इस मंच के नियमों के एकदम प्रतिकूल है भाई जी। बेहद निराशाजनक और बेअदब भी। आपसे इस तरह की भाषा की मुझे उम्मीद न थीं। ख़ैर, शायद आपकी सिर्फ प्रशंशा वाली जगह पसन्द है तो कोई क्या कर सकता है, सादर
सारा विवाद पढ़ा जो भी हो बहुत निराशाजनक है..
हालाँकि ग़ज़ल बहुत खूब कही है आदरणीय सलीम साहब..
आदरणीय सलीम साहब आपकी टिप्पणी बेहद निराशाजनक और बेअदबी से लबरेज है, ऐसे में आपकी सदस्यता निलंबित करना इस मंच हेतु अंतिम समाधान है, अनुरोध है कि आप अपनी रचनाओं को सुरक्षित कर लें । सादर ।
आदरणीय सलीम रज़ा साहब, आप तो इस ओ बी ओ परिवार के पुराने सदस्य हैं फिर यहाँ के कायदे, व्यवहार क्यों भूल गए ! हम सभी एक दुसरे से बहुत ही आदर के साथ सीखते और और एक दुसरे को बहुत ही प्रेम के साथ सिखाते हैं. इस मंच पर या कही भी अगर आप अपनी कृतियों को पोस्ट करते हैं तो उस पर होने वाली समीक्षा / चर्चा को रोक नहीं सकते. आप का कहना कि .....
//..... नोट
हम इस बारे में कोई बहस नहीं चाहते..//
साथ ही इस तरह का आप का अंदाज ...//आप कौन होते हैं ये कहने वाले की मंच से दूर रहें//
निहायत ही बेअदबी और इस मंच की गरिमा के प्रतिकूल है. बड़े ही अदब के साथ कहना चाहूँगा कि यदि आप अपनी रचनाओं पर चर्चा नहीं चाहते और साथी सदस्यों के साथ अदब से पेश नहीं आ सकते तो यह मंच आपके अनुकूल नहीं है.
सादर
गणेश जी बागी
मुख्य प्रबंधक
ओ बी ओ परिवार
//आप अपने विद्यार्थियों को सिखाने के लिए दूसरे की ग़ज़ल का इंतख़ाब करें...//
जनाब सलीम साहिब आप शायद ये भूल गए हैं कि ये फ़ेसबुक नहीं ओबीओ का मंच है, और यहाँ ऐसा कभी नहीं होता,यहाँ रचना को देखा जाता है,रचनाकार को नहीं,इस मंच का मक़सद ही सीखना और सिखाना है, और आप मंच के मक़सद को अपनी अना का प्रश्न नहीं बना सकते, अगर आपको अपनी ग़ज़ल पर आलोचना या चर्चा पसन्द नहीं तो बहतर होगा कि आप इस मंच से दूर रहें,आपको ये अधिकार नहीं है कि आप इस तरह के शब्दों का प्रयोग करें,ये मंच की परिपाटी के ख़िलाफ़ है,उम्मीद है आप मेरी बात समझ रहे होंगे ?
आ. सलीम साहब,
एक महत्वपूर्ण बात रह गयी थी... और वो यह कि यहाँ कोई मेरा विद्यार्थी नहीं है .. मैं मानता हूँ कि हम सब विद्यार्थी हैं..
सादर
आ. सलीम साहब,
इस मंच की परम्परा है कि अगर किसी को रचना में कोई त्रुटी दोष लगे तो वो उसे इंगित कर के चर्चा कर सकता है जिस से अंतत: सब लाभान्वित होते हैं...
इसी परम्परा के अंतर्गत मैं उसी ग़ज़ल को चुनुँगा जिस में मुझे कुछ ऐसा जान पड़ेगा जिसकी चर्चा आवश्यक है.
यदि आप को यह व्यवस्था पसंद न आती हो तो यह आप की समस्या है..
आप निश्चिंत रहें... मैं आयन्दा भी जहाँ आवश्यक होगा वहाँ प्रश्नचिन्ह के साथ खड़ा मिलूँगा..
सादर
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1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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