For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धूप का विस्तार लगाकर सो गए - सलीम रज़ा रीवा

2122 2122 212

धूप का विस्तार लगाकर सो गए

छांव सिरहाने दबाकर सो गए

oo

ज़िंदगी से थक-थका कर सो गए

वो चराग़--जाँ बुझा कर सो गए

oo

गुफ़्तगू की दिल मे ख़्वाहिश थी मगर

वो मेरे ख़्वाबों में आकर  सो गए

oo

तंग थी चादर तो हमने यूँ किया

पांव सीने से लगाकर सो गए

oo

उनकी नींदों पर निछावर मेरे ख़ाब

जो ज़माने को जगाकर सो गए

oo

बे-कसी में और क्या करते 'रज़ा

ख़ुद को ही समझा-बुझा कर सो गए
________________________
मौलिक व अप्रकाशित

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़

Views: 990

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on March 22, 2018 at 5:36am

यहाँ रचना पर चर्चा होने से हम जैसे न जाने कितने सीखने वाले लाभान्वित होते हैं, शायद आपको इस बात का इल्म नहीं है, अन्यथा इतने दिन से आप मंच से जुड़े हैं, कम से कम इस तरह की भाषा का उपयोग न करते। सादर

Comment by नाथ सोनांचली on March 22, 2018 at 5:33am

आद0 सलीम साहब सादर अभिवादन। आपकी टिपण्णी इस मंच के नियमों के एकदम प्रतिकूल है भाई जी। बेहद निराशाजनक और बेअदब भी। आपसे इस तरह की भाषा की मुझे उम्मीद न थीं। ख़ैर, शायद आपकी सिर्फ प्रशंशा वाली जगह पसन्द है तो कोई क्या कर सकता है, सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 21, 2018 at 5:26pm

सारा विवाद पढ़ा जो भी हो बहुत निराशाजनक है..

हालाँकि ग़ज़ल बहुत खूब कही है आदरणीय सलीम साहब..


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2018 at 10:56am

आदरणीय सलीम साहब आपकी टिप्पणी बेहद निराशाजनक और बेअदबी से लबरेज है, ऐसे में आपकी सदस्यता निलंबित करना इस मंच हेतु अंतिम समाधान है, अनुरोध है कि आप अपनी रचनाओं को सुरक्षित कर लें । सादर ।

Comment by SALIM RAZA REWA on March 20, 2018 at 10:24am
आपको आप का मंच मुबारक हो...
और हाँ कुछ गंदे लोंगो की हिटलर शाही ने इस मंच को जकड़ लिया है...
उस गंदे लोंगो को आप इस ग्रुप का एडमिन बना दीजिए..
जो किसी की बात ना सुने और सब पे धौंस जमाए...
और कुछ लोग तो इस ग्रुप में ज्यादा ही बोलते हैं..
......
अभी अच्छे अच्छे लोगों के लिए मेरा मुहब्बत भरा आख़िरी सलाम....
गंदे विचार के लोंगो को मशविरा अपनी आदत सुधारे..... इज्ज़त पाने के लिए इज्ज़त दो...
हिटलर लोगों से दूर रहना ही भलाई है...

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2018 at 9:53am

आदरणीय सलीम रज़ा साहब, आप तो इस ओ बी ओ परिवार के पुराने सदस्य हैं फिर यहाँ के कायदे, व्यवहार क्यों भूल गए ! हम सभी एक दुसरे से बहुत ही आदर के साथ सीखते और और एक दुसरे को बहुत ही प्रेम के साथ सिखाते हैं. इस मंच पर या कही भी अगर आप अपनी कृतियों को पोस्ट करते हैं तो उस पर होने वाली समीक्षा / चर्चा को रोक नहीं सकते. आप का कहना कि .....

//..... नोट
हम इस बारे में कोई बहस नहीं चाहते..//

साथ ही इस तरह का आप का अंदाज ...//आप कौन होते हैं ये कहने वाले की मंच से दूर रहें//

निहायत ही बेअदबी और इस मंच की गरिमा के प्रतिकूल है. बड़े ही अदब के साथ कहना चाहूँगा कि यदि आप अपनी रचनाओं पर चर्चा नहीं चाहते और साथी सदस्यों के साथ अदब से पेश नहीं आ सकते तो यह मंच आपके अनुकूल नहीं है. 

सादर 

गणेश जी बागी 

मुख्य प्रबंधक 

ओ बी ओ परिवार 

Comment by SALIM RAZA REWA on March 19, 2018 at 11:18pm
आदरणीय समर साहब.
आप कौन होते हैं ये कहने वाले की मंच से दूर रहें,
और हाँ बात वह मानी जाती है जो मानने लायक होती है,

और हर कोई मानता है,
सादर
Comment by Samar kabeer on March 19, 2018 at 10:21pm

//आप अपने विद्यार्थियों को सिखाने के लिए दूसरे की ग़ज़ल का इंतख़ाब करें...//

जनाब सलीम साहिब आप शायद ये भूल गए हैं कि ये फ़ेसबुक नहीं ओबीओ का मंच है, और यहाँ ऐसा कभी नहीं होता,यहाँ रचना को देखा जाता है,रचनाकार को नहीं,इस मंच का मक़सद ही सीखना और सिखाना है, और आप मंच के मक़सद को अपनी अना का प्रश्न नहीं बना सकते, अगर आपको अपनी ग़ज़ल पर आलोचना या चर्चा पसन्द नहीं तो बहतर होगा कि आप इस मंच से दूर रहें,आपको ये अधिकार नहीं है कि आप इस तरह के शब्दों का प्रयोग करें,ये मंच की परिपाटी के ख़िलाफ़ है,उम्मीद है आप मेरी बात समझ रहे होंगे ?

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 19, 2018 at 10:18pm

आ. सलीम साहब,
एक महत्वपूर्ण बात रह गयी   थी... और वो यह कि यहाँ कोई मेरा विद्यार्थी नहीं है ..  मैं  मानता हूँ   कि हम सब   विद्यार्थी हैं..
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 19, 2018 at 10:13pm

आ. सलीम साहब,
इस मंच की परम्परा है कि अगर किसी को रचना में कोई त्रुटी  दोष लगे   तो वो उसे इंगित कर के चर्चा कर सकता है   जिस से अंतत: सब लाभान्वित होते हैं...
इसी परम्परा के अंतर्गत मैं   उसी ग़ज़ल को चुनुँगा जिस में   मुझे कुछ ऐसा जान पड़ेगा जिसकी चर्चा आवश्यक है.
यदि आप को यह व्यवस्था पसंद न आती हो  तो यह आप की समस्या   है..
आप निश्चिंत रहें... मैं आयन्दा भी जहाँ आवश्यक होगा वहाँ  प्रश्नचिन्ह के साथ खड़ा मिलूँगा..
सादर  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service