For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिंदगी को गुनगुना कर चल दिए-सलीम रज़ा रीवा

ओबीओ को समर्पित एक क़त'आ  

----------------------------------

जब से तेरी मेहरबानी हो गई
ख़ूबसूरत ज़िन्दगानी हो गई
हम हुए तेरे दिवाने इस तरह
जिस तरह 'मीरा' दिवानी हो गई

...........

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़

--------

जिंदगी को गुनगुना कर चल दिए

मौत को अपना बना कर चल दिए

oo

उम्र भर की दोस्ती जाती रही

आप ये क्या गुल खिलाकर चल दिए

oo

अब यकीं उनकी ज़बाँ का क्या करें

जो फ़क़त सपने दिखाकर चल दिए 

oo

आज उनका दिल दुखा शायद बहुत

बज़्म से आँसू बहा कर चल दिए

oo

बे-बसी में और क्या करते  'रज़ा'

दर्द-ओ-ग़म अपना सुनाकर चल दिए

_________________________

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 520

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on April 8, 2019 at 4:39pm

बृजेश कुमार 'ब्रज' साहब,
आपकी पुरख़ुलूस महब्बत के लिए दिली शुक्रिया,

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 4, 2019 at 11:26am

वाह वाह आदरणीय सलीम साहब बहुतखूब ग़ज़ल कही है और क़त'आ भी लाजबाब..

Comment by SALIM RAZA REWA on April 3, 2019 at 6:08pm
मोहतरम समर कबीर साहब,
आपकी पुरख़ुलूस हौसला अफ़जाई और
टंकण ग़लती के इशारे के लिए बहुत बहुत शुक्रिया l
Comment by Samar kabeer on April 3, 2019 at 12:13pm

जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,क़ित'अ भी अच्छा हुआ है,और ग़ज़ल भी अच्छी हुई है,मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

'जब से तेरी मेहरबानी हो गई'

इस मिसरे में 'मेहरबानी' को "मह्रबानी" कर लें ।

Comment by SALIM RAZA REWA on April 2, 2019 at 2:01pm
हौसला अफजाई के लिए बेहद ममनून ओ मशक़ूर हूँ
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 2, 2019 at 1:37pm

जनाब भाई सलीम रज़ा साहिब, बहुत ही उम्दा क़ता और ग़ज़ल हुई है दाद के साथ शेर दर शेर मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l मुद्दत के बाद आपको ब्लॉग में देख कर बहुत खुशी हुई l  वज्‍म _बज्‍म 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service