For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदर्शवाद - लघुकथा

"मैं मानती हूँ डॉक्टर, कि ये उन पत्थरबाजों के परिवार का ही हिस्सा हैं जिनका शिकार हमारे फ़ौजी आये दिन होते हैं लेकिन सिर्फ इसी वज़ह से इन्हें अपने 'पढ़ाई-कढ़ाई सेंटर' में न रखना, क्या इनके साथ ज्यादती नहीं होगी?" हजारों मील दूर से घाटी में आकर अशिक्षित और आर्थिक रूप से कमजोर औरतों के लिये 'हेल्प सेंटर' चलाने वाली समायरा, 'आर्मी डॉक्टर' की बात पर अपनी असहमति जता रही थी।

"ये फ़ालतू का आदर्शवाद हैं समायरा, और कुछ नहीं।" डॉक्टर मुस्कराने लगा। "तुमने शायद देखा नहीं हैं पत्थरबाजों की चोट से ज़ख़्मी जवानों और उनके दर्द को, अगर देखा होता तो...!"

"हाँ नहीं देखा मैंने!" समायरा ने उनकी बात बीच में काट दी। "क्योंकि देखना सिर्फ आक्रोश पैदा करता हैं, बदले की भावना भरता है मन में।"

"तो तुम्हें क्या लगता हैं कि हमारे फ़ौजी जख्मी होते रहे और हम माफ़ी देकर उनका दुस्साहस बढ़ाते रहे।"

"नहीं, मैं भी चाहती हूँ कि उन्हें सख्त सजा मिले ताकि वे आइंदा ऐसा करने की हिम्मत न करें। लेकिन ये सब तो क़ानून के दायरे में हैं और मैं नहीं समझती कि इस सजा में उनके परिवार को भागीदार बना देना उचित हैं डॉक्टर।" समायरा की नजरों में एक चमक उभरी आई थी।

"यानि कि आप दुश्मनों का साथ देना चाहती हैं!" डॉक्टर की बात में एक व्यंग झलक आया।

"डॉक्टर, हमारे दुश्मन ये भटके हुए लोग या इनके परिवार वाले नहीं हैं। हमारी दुश्मन तो सदियों से इनके विचारों में पैठ बनाये बैठी नफरत और निरक्षरता की अँधेरी रातें है, हमें इसी रात को सुबह में बदलना है।" वह गंभीर हो गयी।

"तो इस फ़ालतू आदर्शवाद को अपना सिद्धांत मानती हैं आप!" डॉक्टर के चेहरे की व्यंग्यात्मक मुस्कान गहरी हो गयी।

"नहीं! ये फ़ालतू आदर्शवाद नहीं, जीवन का सच हैं जो हर युग में और भी अधिक प्रखर हो कर सामने आता हैं।"

"अच्छा! और कौन था वह जिसने ये आदर्श दिया तुम्हे।" सहसा डॉक्टर खिलखिला उठा।

"एक फ़ौजी था डॉक्टर साहब.....!" अनायास ही समायरा भावुक हो गयी। "जिसने अपनी मोहब्बत भरी अंगूठी तो मुझे पहना दी थी लेकिन ऐसे ही कुछ पत्थरबाजों के कारण अपनी क़समों का सिन्दूर मेरी मांग में भरने कभी नहीँ लौट सका।"

डॉक्टर की मुस्कराहट चुप्पी में बदल गयी थी लेकिन समायरा की आँखें अभी भी चमक रही थी।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 840

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 28, 2018 at 9:04pm
कथा पर आपकी विस्तृत टिप्पणी के लिये दिल से शुक्रिया भाई शेख शहजाद उस्मानी जी। आपने शीर्षक के बारें में बिलकुल सही कहा। रचना के लिये इससे उम्दा शीर्षक रखे जा सकतें है, जो शायद मैं नहीं सोच सका। आप सुझाये कुछ?
जहां तक वाक्यों को छोटे भागो में बांटने की बात है, मैं आपको बताना चाहूँगा कि लंबे वाक्य और वार्तालाप मेरी कथा शैली को सहज बनाती है और इसमें मैं खुद को भी सहज पाता हूँ। एक बार फिर से शुक्रिया।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 28, 2018 at 8:57pm
आभार आदरणीया कल्पना भट्ट जी, आपके इन सुंदर शब्दों के लिये। सादर।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 28, 2018 at 8:56pm
तहे दिल से शुक्रिया, आदरणीय समर कबीर भाई जी आप की इस हौसला देते शब्दों के लिये। आपका स्नेह बना रहे। सादर।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 28, 2018 at 8:53pm
भाई तेजवीर सिंह जी रचना पर आपकी प्रोत्साहन देती टिप्पणी के लिये दिल से आभार। सादर।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 28, 2018 at 8:52pm
हार्दिक आभार जनाब मोहम्मद आरिफ साहब, रचना पर पहली और सकारत्मक, हौसला देती टिप्पणी के लिये। शुर्किया।
Comment by surender insan on March 28, 2018 at 7:56pm

वाह बेहतरीन रचना की हार्दिक बधाई। आपकी। रचना पढ़ी बहुत अच्छा लिखा है आपने। रचना पढ़ एक सवाल उठा है मन। जानकारी के लिए जानना चाहता हूं। क्या लघुकथा के  एतबार से रचना बड़ी नही?

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 28, 2018 at 7:21pm

यह एक ऐसा विषय और बहुआयामी कथानक है कि इसके वर्तमान और भूत अर्थात इतिहास का जितना ईमानदार अध्ययन किया जाये, उतनी विसंगतियां और समस्याएं, न्याय और अन्याय के सवालों के साथ लेखनी को सक्रीय कर देती हैं। इस विषय पर अनुभवी लेखनी चलाने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब वीरेंद्र वीर मेहता साहिब। किसी तरह लम्बे संवाद छोटे टुकड़ों के कथोपकथन में कहे जा सकते हैं मेरे विचार से। शीर्षक बढ़िया है, पर कुछ और भी बेहतर सोचा जा सकता है नयेपन वाला। सादर।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 28, 2018 at 2:30pm

बहुत बढ़िया और सशक्त लघुकथा कही है आपने, हार्दिक बधाई आपको|

Comment by Samar kabeer on March 28, 2018 at 12:26pm

जनाब वीरेन्द्र वीर मेहता जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on March 28, 2018 at 11:17am

हार्दिक बधाई आदरणीय वीर मेहता जी।समयानुकूल एवम संदेशपरक लघुकथा।एक बेहद संवेदनशील विषय को मार्मिक ढंग से उठाती लघुकथा।आज के समय की एक ज्वल्लंत समस्या को बेहतरीन समाधान सहित पेश करने की पुनः बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
3 hours ago
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
11 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
22 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service