For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खुली आँखें हैं और सोया हुआ हूँ ...संतोष

अरकान:-
मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन

खुली आँखें हैं,पर सोया हुआ हूँ
तुम्हारी याद में डूबा हुआ हूँ।।


बदन इक दिन छुआ था तुमने मेरा
उसी दिन से बहुत महका हुआ हूँ।।


मुझे पागल समझती है ये दुनिया
तसव्वुर में तेरे खोया हुआ हूँ।।


जहाँ तुम छोड़कर मुझको गये थे
उसी रस्ते पे मैं बैठा हुआ हूँ।।


ख़ुदा का है करम 'संतोष' मुझ पर
हर इक महफ़िल पे मैं छाया हुआ हूँ।।

#संतोष_खिरवड़कर

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 692

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by santosh khirwadkar on April 3, 2018 at 10:43am

शुक्रिया ,आ.भाई श्री निलेश जी ...

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2018 at 9:26am

शायद यूँ होता तो अर्थपूर्ण होता ..
.
खुली आँखें हैं,पर "खोया" हुआ हूँ

तुम्हारी याद में डूबा हुआ हूँ।।
.
सादर 

Comment by santosh khirwadkar on April 1, 2018 at 11:36am

आदरणीय श्री समर साहब प्रणाम स्वीकारें!!!

धन्यवाद/आभार!!!!

Comment by santosh khirwadkar on April 1, 2018 at 11:34am

आदरणीय आरिफ़ साहब,शुक्रिया!!!

Comment by santosh khirwadkar on April 1, 2018 at 11:33am

आ.आशुतोष जी धन्यवाद!!!!

Comment by santosh khirwadkar on April 1, 2018 at 11:32am

आदरणीय भाई श्री निलेश जी शुक्रिया!! आप सही हैं किन्तु मैंने इसलिए भी आँखे खुली लिखा,बंद आँखों में तो चेतन मस्तिष्क भी क्रियाशील नहीं होता ,तो उसकी याद में डूबता कैसे???

Comment by Samar kabeer on March 31, 2018 at 5:53pm

जनाब संतोष जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on March 31, 2018 at 5:53pm

आदरणीय संतोष जी आदाब,

                शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 30, 2018 at 2:33pm

आदरणीय संतोष जी रचना के लिए हादिक बधाई ..आदरणीय भाई निलेश जी का मशविरा बिलकुल सही है ...सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 29, 2018 at 7:52pm

आ. संतोष दादा.. 
अच्छी ग़ज़ल हुई है ... भाव पक्ष पर मतले में एक   विसंगति है ..
.
खुली आँखें हैं,पर सोया हुआ हूँ
तुम्हारी याद में डूबा हुआ हूँ।।.... यदि याद में डूबे हैं तो चेतन मस्तिष्क क्रियाशील है अत: वो नींद या सोना नहीं है ..जो सानी के भाव के विपरीत अवस्था है ..
सादर  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार अच्छी घनाक्षरी रची है. गेयता के लिए अभी और…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करती सुन्दर प्रस्तुतियाँ हैं…"
8 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   दिखती  न  थाह  कहीं, राह  कहीं  और  कोई,…"
8 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  रचना की प्रशंसा  के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार|"
9 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  घनाक्षरी के विधान  एवं चित्र के अनुरूप हैं चारों पंक्तियाँ| …"
9 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी //नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो…"
10 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में धार जल की शांत है,या…"
11 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया, उतरा मधुमास जो,…"
19 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++ कुंभ उनको जाना है, पुन्य जिनको पाना है, लाखों पहुँचे प्रयाग,…"
22 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक , पोस्ट कुछ देर बाद  स्वतः  डिलीट क्यों हो रहा है |"
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service