अरकान:फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन
ज़िन्दगी से दूर कब तक जाओगे,
किस तरह सच्चाई को झुटलाओगे।।
सादगी इतनी मियाँ अच्छी नहीं,
ज़िन्दगी में रोज़ धोका खाओगे।।
तल्ख़ यादें दिल से मिटती ही नहीं,
ज़िन्दगी में चैन कैसे पाओगे।।
तुम ग़मों को मात देना सीख लो,
अश्क पीकर कब तलक ग़म खाओगे।।
अपनी कमज़ोरी को ज़ाहिर मत करो,
वरना हर सौदे में घाटा खाओगे।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
#संतोष_खिरवड़कर
Comment
हृदय से धन्यवाद आदरणीय अजय जी !!!
'सादगी इतनी मियाँ अच्छी नहीं' लेकिन आपके शेरों की सादगी बहुत प्यारी है.
हार्दिक बधाई. आदरणीय संतोष जी.
धन्यवाद,आदरणीय धामी जी !!!!
आ.भाई संतोष जी सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।
प्रणाम आदरणीय समर साहब !!!
धन्यवाद!
जनाब संतोष जी आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
वैसे,'मुस्काओगे'का प्रयोग भी ग़लत नहीं कहा जा सकता,क्योंकि 'मुस्कान',मुस्काई, कह सकते हैं तो मेरे ख़याल से 'मुस्काओगे'भी ग़लत नहीं,जाय मुखर्जी की एक फ़िल्म का नाम है'एक कली मुस्काई'।
आदरनीय भाई श्री निलेश जी ..उस शे’र को पुनः संशोधित कर कुछ इस तरह पुनः ग़ज़ल में एडिट किया है कि...
तुम ग़मों को मात देना सीख लो,
अश्क़ पीकर कब तलक ग़म खाओगे।।
उचित मार्गदर्शन अपेक्षित!!
धन्यवाद आदरणीय महाजन साहब!!!
शुक्रिया भाई श्री निलेश जी !!
बहुत शुक्रिया आदरणीय आरिफ़ साहब!!!
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