फ़ाइलातुन फ़ईलातुन फ़ईलातुन फ़ेलुन
तेरे नज़दीक ही हर वक़्त भटकता क्यों हूँ
तू बता फूल के जैसा मैं महकता क्यों हूँ
मैं न रातों का हूँ जुगनू न कोई तारा पर
उसकी आँखों में मगर फिर भी चमकता क्यों हूँ
इस पहेली का कोई हल तो बताओ यारो
हिज्र की रातों में आतिश सा दहकता क्यों हूँ
घर बनाया है तेरे दिल में उसी दिन से सनम
सारी दुनिया की निगाहों में खटकता क्यों हूँ
हासिदों को बड़ी तश्वीश है इसकी जानम
बनके धड़कन मैं तेरे दिल में धड़कता क्यों हूँ
जब तुझे मुझ से महब्बत नहीं ये बतला दे
क़तरा क़तरा तेरी आँखों से टपकता क्यों हूँ
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
#संतोष_खिरवड़कर
Comment
धन्यवाद आदरणीय “मुसाफ़िर” जी
आ. भाई संतोष जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
दछसरे शेर में पर तथा मगर का प्रयोग एक ही अर्थ के लिए प्रयोग होने सज अटपटा लग रहा है । गौर कीजिएगा ।
धन्यवाद एवं आभार आदरणीय विश्वकर्मा साहब!!
शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ साहब !!!
आदरणीय संतोष खिरवड़कर साहब खूबसूरत ग़ज़ल कहने के लिये बधाई।
जनाब संतोष साहिब , सुन्दर ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
शेर4 में मिसरों में रब्त क़ायम नहीं हो सका , उला मिसरा यूँ करसकते हैं
यह बता मुझको सनम दिल दिया तूने जब से ।
आदरणीय आरिफ़ साहब तहेदिल से शुक्रिया!!!
आदरणीय संतोष जी आदाब,
बहुत ही बढ़िया अश'आर । हर शे'र ज़ोरदार । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।
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