For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अलग ये बात है लहजा जरा नहीं मिलता ..गजल

बह्र -1212-1122-1212-22


बड़ा शह्र है ये अपना पता नहीं मिलता।।
यहाँ बजूद भी हँसता हुआ नहीं मिलता।।

दरख़्त देख के लगता तो आज भी ऐसा ।
के ईदगाह में अब भी खुदा नहीं मिलता।।

समाज ढेरों किताबी वसूल गढ़ता है।
वसूल गढ़ता ,कभी रास्ता नहीं मिलता।।

मैं पढ़ लिया हूँ कुरां,गीता बाइबिल लेकिन ।
किसी भी ग्रन्थ में , नफरत लिखा नहीं मिलता।।

मुझे भी दर्द ओ तन्हाई से गिला है पर।
करें भी क्या कोई हमपर फ़िदा नहीं मिलता।।

मुझे भी अपनी मुकम्मल ही दोस्ती करनी।
यूँ बावफ़ा को मगर बावफ़ा नहीं मिलता।।

हुजूर आप भी अपनी कभी कहीं कह दो।
ये बीच बीच का ख़ाली शमा नहीं मिलता।।

समझ का फेर है अपनी समझ नहीं पाए।
हरेक शख्स भी उलफत मढ़ा नहीं मिलता।।

मुझे भी रात की तन्हाई नोंच खाती है।
अमास दौर भी कोई चाँद सा नहीं मिलता।।

लिए गरीब के , संसद सा भोजनालय हो।
तड़प वो भूख से मरता हुआ नहीं मिलता।।

हयात आँख मिचौली भी खेल लेगी पर ।
शऊर मरना या जीना, अता नहीं मिलता।।

जरा सा तोड़ कुचल और नया नुश्खा लो ।
हमारे देश सियासत में क्या नहीं मिलता।।

मेरा भी दिल है मुहब्बत में धड़कता तुम सा।
अलग ये बात है लहजा जरा नहीं मिलता।।
आमोद बिन्दौरी /मौलिक , अप्रकाशित

Views: 466

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 4, 2018 at 12:48pm

बहुत खूब, हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on April 2, 2018 at 3:42pm

जनाब आमोद बिंदौरी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

आप चूँकि सुझाये मिसरे नहीं अपनाते,इस लिए कुछ इशारे दे रहा हूँ ।

मतले के ऊला मिसरे की तरतीब यूँ करें:-

'बड़ा है शह्र ये अपना पता नहीं मिलता'

दूसरे शैर में भाव स्पष्ट नहीं है,दरख़्त देख के ऐसा क्यों लगता है?

तीसरे शैर में 'वसूल' को "उसूल" कर लें ।

4थे शैर में 'कुरां' ग़लत है,सही शब्द है "क़ुरआँ",और ऊला में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,'बाइबल लेकिन',और सानी में 'नफ़रत'स्त्रीलिंग है ।

5वें का ऊला लय में नहीं है ।

6ठे के ऊला में 'ही' को "है" और सानी में 'मगर' को "कभी" कर लें ।

7वाँ शैर हटा दें तो बहतर है ।

9वाँ शैर स्पष्ट नहीं है ।

दसवें शैर में शिल्प और व्याकरण दोष है ।

11वें शैर में भी शिल्प व्याकरण सही नहीं है ।

12 वाँ भी ऐसा ही है ।

एक बात ध्यान में रखें कि कम अशआर कहें और सोच समझ कर कहें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 2, 2018 at 11:44am

हार्दिक बधाई आदरणीय अमोद जी। बेहतरीन गज़ल।

मैं पढ़ लिया हूँ कुरां,गीता बाइबिल लेकिन ।
किसी भी ग्रन्थ में , नफरत लिखा नहीं मिलता।।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 31, 2018 at 10:09pm

बहुत सुंदर गजल खी आपने , बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by Mohammed Arif on March 31, 2018 at 5:42pm

आदरणीय आमोद जी आदाब,

                     बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल । हर शे'र उम्दा । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

Comment by Shyam Narain Verma on March 30, 2018 at 3:13pm
इस लाजवाब, उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई | सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
14 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service