बह्र:- 2122-2122-2122-212
एक तरफ़ा हो नहीं सकता कोई भी फैसला।।
दर्द दोनों ओर देगा ये सफर ये रास्ता।।
अब रकीबत का असर आया है रिस्ते में मेरे।
दरमियाँ अब दिख रहा है दूरियां और फासला।
बीज रिश्ता ,फासले के आज कल बोने लगा ।
अब फसल नफरत की पैदा खेत में वो कर रहा।।
लाख समझाया मगर उनको समझ आया नहीं।
दम मुहब्बत तोड़ देगी, गर नहीं होंगे फ़ना।।
बस जरा सा मुस्कुराकर कर दिया हल मुश्किलें।
फर्क अब पड़ता नहीं ,मैं बावफ़ा वो बेवफा।।
मुझको मुझसे ज्यादा जाने, ज्यादा समझे कौन है।
मां समझ जाती है मेरी ,आह क्या मेरा दर्द क्या ।।
मैं भी समझा मुफलिसी से प्यार को नफरत नहीं।
प्यार भी दौलत में बिककर, प्यार को धोखा दिया।।
हौसला विस्वास मेरा बस यही इक जो भी था।
जंग जो दौलत की घुटने टेकते देखा गया।।
क्या सामाजिक तौर उलफत का कोई ओहदा नहीं??
क्यों वो हाँ में हाँ मिलाता आज सबकी दिख रहा।
आमोद बिन्दौरी / मौलिक- अप्रकाशित
Comment
हार्दिक बधाई
आद0 आमोद जी ग़ज़ल का बेहतरीन प्रयास। आप जो भी परिवर्तन करें, ब्लॉग पर जाकर रचना में कर लिया कीजिये। बधाई देता हूँ आपको। लगे रहिये।
कुछ शेर एडिट के बाद
एक तरफ़ा हो नहीं सकता कोई भी फैसला।।
दर्द दोनों ओर देगा ये सफर ये रास्ता।।
बीज अब वो ,फासले के आज कल बोने लगा ।
फसल अब नफरत की वो भी चाहता है काटना।।
अब रकाबत का असर आया है रिस्ते में मेरे।
दूर तक अब दिख रहा है फासला ही फासला।
लाख समझाया मगर उनको समझ आया नहीं।
दम मुहब्बत तोड़ देगी, गर नहीं होंगे फ़ना।।
बस जरा सा मुस्कुराई, हल हुई सब मुश्किलें।
फर्क अब पड़ता नहीं ,मैं बावफ़ा वो बेवफा।।
मुझको मुझसे ज्यादा जाने, ज्यादा समझे कौन है।
मां समझ जाती है मेरी ,आह क्या है, दर्द क्या ।।
मैं भी समझा मुफलिसी से प्यार को नफरत नहीं।
प्यार भी दौलत से घुलकर, क्षण में इक ओझल हुआ।।
हौसला विस्वास मेरा बस यही इक जो भी है।
बज़्म में दौलत की घुटने टेकते जो दिख रहा ।।
क्या समाजिक तौर उलफत का कोई ओहदा नहीं??
क्यों वो हाँ में हाँ मिलाता आज सबकी दिख रहा।
आमोद बिन्दौरी / मौलिक- अप्रकाशित
शुक्रिया , आ समर दादा , आ शेख साहब, आ नीलेश भाई साहब, मोहम्मद आरिफ साहब ....
आ समर दादा आप सही है , मैं नौकरी के कारण obo में गजल की जानकारी नहीं पड़ता , मेरे पास समय नहीं रहता बिलकुल भी , लिखने का कुछ ऐसा है कि जो समझ आया लिख लेता हूँ यह नशे की तरह है ।पर मै खुशकिस्मत हूँ की obo में आप लोग मिले जो अपना अमूल्य समय देते हैं मार्गदर्शन देते है ।
मुझे जैसे ही समय मिलता है ..मैं गजल की पूरी जानकारी कंठस्थ करने का प्रयास करूँगा ,और शायरी की समझ करूँगा ,
आप सभी को नमन
एक तरफ़ा हो नहीं सकता कोई भी फैसला।।
दर्द दोनों ओर देगा ये सफर ये रास्ता।।
बीज रिश्ता ,फासले के आज कल बोने लगा ।
फसल अब नफरत की पैदा खेत में वो कर रहा।।
अब रकाबत का असर आया है रिस्ते में मेरे।
दरमियाँ अब दिख रहा है फासला ही फासला।
लाख समझाया मगर उनको समझ आया नहीं।
दम मुहब्बत तोड़ देगी, गर नहीं होंगे फ़ना।।
बस जरा सा मुस्कुराकर, हल हुई सब मुश्किलें।
फर्क अब पड़ता नहीं ,मैं बावफ़ा वो बेवफा।।
मुझको मुझसे ज्यादा जाने, ज्यादा समझे कौन है।
मां समझ जाती है मेरी ,आह क्या है, दर्द क्या ।।
मैं भी समझा मुफलिसी से प्यार को नफरत नहीं।
प्यार भी दौलत से मिलकर, प्यार को धोखा दिया।।
हौसला विस्वास मेरा बस यही इक जो भी है।
जंग जो दौलत की घुटने टेकते देखा गया।।
क्या समाजिक तौर उलफत का कोई ओहदा नहीं??
क्यों वो हाँ में हाँ मिलाता आज सबकी दिख रहा।
आमोद बिन्दौरी / मौलिक- अप्रकाशित
दूसरे शैर के ऊला में 'रिस्ते' को "रिश्ते" कर लें ।
आख़री शैर में 'समाजिक' सही है या ग़लत मुझे नहीं मालूम,हिन्दी है न?
वैसे ग़ज़ल में अच्छा सुधार किया है आपने,बधाई स्वीकार करें ।
जनाब आमोद जी आदाब,ग़ज़ल अभी और समय चाहती है,आप ओबीओ पर रहते हुए उसका कोई लाभ नहीं ले रहे हैं ।
इस ग़ज़ल पर जनाब निलेश जी की बातों का संज्ञान लें,प्रस्तुति हेतु बधाई ।
बहुत बढ़िया पेशकश। हार्दिक बधाई आदरणीय आमोद श्रीवास्तव जी। पुरोधाओं के सुझावों पर अमल कीजिएगा।
आ. आमोद जी,
ग़ज़ल के लिए बधाई.
ग़ज़ल अभी अपरिपक्व है, थोडा और चिन्तन करते तो और निखरती ..
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अब रकीबत का असर आया है रिस्ते में मेरे... सही शब्द है रक़ाबत
दरमियाँ अब दिख रहा है दूरियां और फासला।.. इस मिसरे में व्याकरण दोष है ... दूरियाँ बहुवचन, फ़ासला एक वचन और फिर दिख रहा है दूरियाँ..में अटपटापन है ..
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फ़'सल.. को फ़स'ल कर लीजिये..सही मात्रिक भार यही है ...
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बस जरा सा मुस्कुराकर कर दिया हल मुश्किलें।...मुस्कुराकर के बाद कर अजीब है.. फिर वाक्य रचना भी ठीक नहीं है ..
मां समझ जाती है मेरी ,आह क्या मेरा दर्द क्या ।।,,, ये मिसरा बहर के लिए देख लें... इस बहर में २ को ११ पढने की छूट नहीं है ..मेरा शब्द ११ पर बांधा है आपने ..
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सामाजिक..में सा को गिराना दोषपूर्ण है..
थोडा समय देंगे और अध्ययन करेंगे तो लाभ होगा
सादर
आदरणीय आमोद जी आदाब,
ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है । ग़ज़ल अभी थोड़ा समय चाहती है ।बधाई स्वीकार करें । बाक़ी गुणीजनों का इंतज़ार करें ।
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