यथार्थ ....
कुछ पीले थे
कुछ क्षत-विक्षत थे
कुछ अपने शैशव काल में थे
फिर भी उनका
शाखाओं का साथ छूट गया
धरा पर पड़े
इन पत्तों की बेबसी पर
हवा कहकहे लगा रही थी
जिसके फैले बाज़ुओं पर
निश्चिंत रहा करते थे
उम्र के पड़ाव पर
उन्हीं बाजुओं से
साथ छूटता चला गया
अब उनका बाबा
एक कंकाल मात्र ही तो था
पीले पत्ते बात को समझते थे
कभी -कभी हवा के बहकावे में
इधर -उधर हो जाते थे
लेकिन शैशवकाल के पत्ते
ज़मीन पर तने के साथ लिपटे थे
हवा के वेग से डरे थे
बाबा बेबस था
अपने निस्तेज शरीर से
वो अपनी बाजुओं से गिरे पत्तों की
कोई सहायता
नहीं कर पा रहा था
अचानक
एक कुल्हाड़ा चला
वो
बूढ़ा वृक्ष
उनका बाबा
धड़ाम से गिर पड़ा
पीले सूखे पत्ते
शैशवकाल के पत्ते
ज़माने के क़दमों तले
रौंदे गए पत्ते
सब के सब
एक स्वर में चीख पड़े
बा....बा
बा........बा
बा..............बा
मगर
बाबा जा चुके थे
हाँ,लेकिन
जाते -जाते एक यथार्थ से
परिचय करवा गए
कि
जीवन में
बड़ों का
क्या
महत्त्व होता है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विजय निकोर साहिब , सादर प्रणाम ... सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से शुक्रिया।
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब सृजन के भावों की गहनता को आत्मीय स्वीकृति देती आपकी अनमोल प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।
बहुत खूब... हार्दिक बधाई ..
जनाब सुशील सरना जी आदाब,भाई मज़ा आ गया आपकी कविता पढ़कर,इशारों इशारों में कितनी गहरी बात कह दी आपने,वाह बहुत ख़ूब, दिल खोल कर दाद लीजिये,इस शानदार प्रस्तुति पर ।
आदरणीय Shyam Narain Verma जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार।
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online