ओ बी ओ में हो रहा, उत्सव का आगाज |
आठ वर्ष तक का सफ़र,साक्ष्य बना है आज ||
दूर दृष्टि बागी लिए, खूब बिछया साज |
योगराज के यत्न से, बना खूब सरताज | |
काव्य विधा को सीखते, विद्वजनों के साथ
सच्चे मन से साधते, नव अंकुर का हाथ |
लघु-कथाए रच रहे, गध्य क्षेत्र में लोग,
मिली प्रतिष्ठा जो यहाँ, माने नवल प्रयोग ||
सौरभ सी खुशबू मिले, रंगत भरी सुगंध
सीख-सीख सब रच रहे, सुंदर ललित निबंध |
सबके मन खिलते यहाँ, प्रेम प्रीति के रंग
काव्य विधा को सीखने, करते सब सत्संग |
काव्य गजल या गीत को, पढ़ते है सब साथ
छंद रचे मन भाव से, मिले साथ का हाथ ||
प्राची में नित भौर ही, रंगत भरी सुगंध
रचते मन के भाव से, सुन्दर ललित निबंध |
ओबीओ परिवार में, है खुशियों का राज
ई-पत्रक में मंच पर, माने सब सरताज ||
जो भी जुड़ते मंच से, बढ़ा सके आधार |
छंद मुक्त की काव्य में, बहती रहे बयार ||
(नितांत मौलिक व स्वरचित)
लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत आभार आपका श्री सत्यनारायण सिंह जी |
आदरणीय लक्ष्मण जी, बहुत अच्छे प्रासंगिक दोहों हुए हैं. हार्दिक बधाई.
अच्छे दोहों के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी
आप और हम ग़लत चीज़ को अपनाकर उसपर सही का ठप्पा नहीं लगा सकते,'साज़' और 'आग़ाज़" शब्दों में बिंदी न लगाने से ये शब्द सही नहीं हो जाएंगे, सही शब्द तो बिंदी लगाने से ही बनता है,वैसे जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब से जब भी इस सम्बन्ध में बात हुई है,उन्होंने भी 'आज' के साथ "आग़ाज़" की तुकान्तता को सही ठहराया है, लेकिन उनके सही कह देने से ये शब्द बिना बिंदी के सही नहीं हो जायेंगे,रचना आपकी है, और दोनों विकल्प आपके सामने हैं,और आप ये भी तस्लीम कर चुके हैं कि मैं सही कह रहा हूँ,तो अब किसी और के कथन की क्या ज़रूरत है, बदलाव कर दें,अगर सही मानते हैं तो ।
ओबीओ की शान में, लक्ष्मण जी ने आज।
सुंदर दोहे रच दिए, उठे नवल बज साज।।
आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी, बहुत सुन्दर प्रस्तुति । हार्दिक बधाई ।
दोहे सराहने के लिए हार्दिक आभार आपका श्री तेजवीर सिंह जी | सादर नमन
बहुत बहुत आभार अपका श्री मोहम्मद आरिफ साहब |
दोहे सराहने के लिए अतिशय आभार आपका भाई श्री लक्ष्मण धामी जी |
बहुत बहुत आभार आपका श्री समर कबीर साहब | आपने सही कहा आग़ाज और साज जब उर्दू में या गजल में प्रयोग करते है तो इनके नीचे बिंदी लगती है | लेकिन कई विद्वज्जनों का कहना है कि हिंदी छंद में बगैर बिंदी की ये शब्द लिखे जा सकते है | वरना मै चाहता तो और शब्द भी लिख सकता था | यहाँ मंच पर विद्वजनों की जो राय आएगी उसी अनुरूप मैं समुचित बदलाव कर लूंगा | सादर नमन |
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