For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आलमे खयाल

(अतुकांत)

शाम बैठी रही हो कर तैयार वह दुलहन-सी

उदास.. मुन्तज़िर थी वह आज भी इश्क की

ज़रूर निराला ही होगा  यह आलमे तसव्वुर

दर पर हाँ एक हल्की-सी दस्तक तो हुई थी

पर वह जो आया था दर पर वह इश्क न था

फ़कत आलमे फ़ना था .. हवा का झोंका था

उसका क्या ? आया,  फ़ना कर के चला गया

आदतन किसी और दरवाज़े पर दस्तक देने

                   -------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

आलमे खयाल    = कल्पना जगत

आलमे तसव्वुर   = गूढ़ ध्यान का संसार

आलमे  फ़ना      =नश्वर जगत

Views: 639

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on April 11, 2018 at 10:32am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र जी।

Comment by vijay nikore on April 11, 2018 at 10:31am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।

Comment by vijay nikore on April 11, 2018 at 10:30am

    सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय  शेख़ शहजाद उस्मानी साहब। आपसे मिला मान बहुमान्य है।

Comment by नाथ सोनांचली on April 11, 2018 at 5:18am

आद0 विजय निकोर जी सादर नमन। बढिया कविता कही आपने, बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 10, 2018 at 1:30pm

आ. भाई विजय जी, सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2018 at 11:33am

वाह। // आलमे फ़ना . .. हवा का झोंका // बेहतरीन सृजन के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आदरणीय विजय निकोरे साहिब। शब्दार्थ के लिए हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on April 8, 2018 at 10:50am

आदरणीय भाई समर जी, आदाब।

आपका सुझाव बहुत अच्छा लगा, और संशोधन कर दिया है।

मैं उर्दु कविता लिखने में अभी नया हूँ, लेकिन शीघ्र सीखने की कोहिश कर रहा हूँ।

कृपया मार्ग-दर्श्न करते रहें। सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on April 8, 2018 at 10:29am

मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद ।

Comment by vijay nikore on April 8, 2018 at 9:53am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ भाई। संशोधन कर दिया है।

Comment by Mohammed Arif on April 8, 2018 at 7:47am

आदरणीय विजय निकोर जी आदाब,

                              अपनी परंपरागत शैली से अलग हटकर रचना पेश की आपने । बड़ी ख़ुशी की बात है । रचनाकार में खिलंदड़पन होना आवश्यक है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें । आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह का संज्ञान लें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
2 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
7 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
8 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आ. आज़ी तमाम भाई,अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ शेर और बेहतर हो सकते हैं.जैसे  इल्म का अब हाल ये है…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आ. सुरेन्द्र भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है बोझ भारी में वाक्य रचना बेढ़ब है ..ऐसे प्रयोग से…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेंदर भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई आपको , गुनी जन की बातों का ख्याल कीजियेगा "
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service