For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नीयत और नियति (लघुकथा)

"वह भिखारी हमारी तरफ़ देख कर क्यों मुस्करा रहा था, जबकि हमने उस के कटोरे में कुछ भी नहीं डाला!"अतृप्त नज़रों को नज़रंदाज़ करती मॉडर्न लड़की ने भीड़-भाड़ वाली सड़क पर सपरिवार चलते हुए अपने पिता से पूछा!


पिताश्री चुप रहे और उसके गले में हाथ डाल कर बोले - "मत देख उधर! पैसों के लिए इम्प्रेस कर रहा होगा!"


सब के क़दम मेले के मुख्य द्वार की ओर तेजी से बढ़ ही रहे थे कि दादा जी धीरे से उस लड़की के कान में बोले - "दरअसल उसकी निगाहें अपने फटे-चिथे कपड़ों और तुम्हारे बदन दिखाऊ कपड़ों पर थी, इसलिए तो मुस्करा रहा था!"


लड़की ने अपने शरीर के ऊपरी कपड़ों को कुछ ठीक किया ही था कि भीड़ में नज़दीक़ चल रहे कुछ अतृप्त युवक उसे मुस्करा कर देखने लगे।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 576

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 25, 2018 at 10:59pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया डॉ. रमा द्विवेदी जी रचना पर अपना अमूल्य समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए।

Comment by Dr.Rama Dwivedi on April 19, 2018 at 6:41am

समाज को एक  सार्थक सन्देश देती  लघुकथा | बधाई  आदरणीय | 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 18, 2018 at 8:48pm

इस रचना पर समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए और राय के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब, जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' इ और जनाब विजय निकोरे साहिब।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 18, 2018 at 8:23pm

आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी ! आदाब ! तमाम टिप्पणीकर्ताओं के साथ आपको भी तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार रचना पर समय देने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए। सवाल मॉडर्न होने/न होने का नहीं है! शब्द समूह " बदन दिखाऊ कपड़ों" को पहले मैं हटाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन कुछ बढ़िया विकल्प नहीं सूझा। वैसे इस तरह की बातचीत हर आयु वर्ग में देखी सुनी जाती है। आपने अपनी पाठकीय राय दी। हार्दिक आभार। दरअसल यहां दादा जी की डांट या हिदायत के उल्लंघन की नाराज़गी वाला संवाद  ही है, यह समझा जाये, तो बेहतर!

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 18, 2018 at 8:15pm

समाज की विद्रूपता की उजागर करती हुई लघु कथा के लिए बधाई आदरणीय..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 18, 2018 at 4:24pm

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी ..वर्तमान समाज की मानसिक स्थति का सटीक चित्रण करती शानदार लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई  एक बिंदु पर मैं संशय की स्थिति में हूँ ..लडकी माडर्न थी पर क्या दादा जी भी थे अपनी नातिन से इस तरह का संवाद दुबिधा में डाल रहा है कृपया मार्गदर्शन का कष्ट करें सादर 

Comment by Samar kabeer on April 17, 2018 at 12:12pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by vijay nikore on April 17, 2018 at 9:34am

आपकी लघु कथा बहुत ही सामयिक स्थिति पर प्रकाश डाल रही है। कोई भी वर्ग, कोई भी स्थान...  मंदिर या बाज़ार ... सभी जगह तन के भूखे बहुत हैं। इस अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई, मेरे आदरणीय भाई शेख शहज़ाद उस्मानी जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
15 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
9 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
9 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
11 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service