पर्यावरण (दोहा छन्द)
बढ़ा प्रदूषण इस कदर, त्राहिमाम हर ओर
जल थल नभ दूषित हुआ,मचा भयंकर शोर.1.
अपने मन का सब करे,काटे वन दिन रात
दैत्य प्रदूषण दन्त से, कैसे मिले निजात.2.
धुँवा धुँवासा हो रहा ,नहीं समझते लोग
अस्पताल में भीड़ है,घर घर बढ़ता रोग.3.
धरती का छेदन करे, पानी तल से दूर
कृषक हाल बेहाल है,मरने को मजबूर.4.
घर आँगन में वृक्ष लगे, सुंदर हो परिवेश
शुद्ध हवा सबको मिले,स्वच्छ बने तब देश.5.
मानव निर्मित सूर्य यह,अणुबम है विकराल
पलक झपकते ही ग्रसे,विनाशकारी व्याल.6.
अगर सचेत न हो सका, पूरा ये संसार
नीलाम्बर ये उग्र हो, बरसेगा अंगार.7.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
वाह बड़े ही सुन्दर दोहे रचे आदरणीय..
आ. डॉ छोटेलाल जी,
अच्छे संदेशपरक दोहे हैं.. बधाई आपक को
आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी, नमस्कार । बहुत ही बढ़िया दोहे हुये हैं । प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।
परमादरणीय समर साहब जी सादर अभिवादन आपके उत्साह वर्धन से मैं अभिभूत हूँ लेखनी सार्थक हुई आपको दिल से धन्यवाद
जनाब डॉ.छोटेलाल सिंह जी आदाब,पर्यावरण पर बहुत बढ़िया दोहे रचे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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