212 212 212 212 212 212
जानें क्या बात है आज कल, दर्द अपना छिपाने लगा
हाल उसका पता कीजिए, वो बहुत मुस्कुराने लगा
हम उसे बस यूँ ही चारागर, झूठे ही तो नहीं लिख दिए
एक बेजान से बुत में भी, वो जो धड़कन चलाने लगा
उसको पागल नहीं जो कहें, तो भला नाम क्या और दें
एक निर्जन नगर में कोई, स्वप्न के घर बसाने लगा
शुक्रिया आपका शुक्रिया है ये तोहफा बहुत कीमती
देखिए तो विरह का असर शेर मैं गुनगुनाने लगा
उम्र भर की ख़लिश के सिवा कुछ भी नफ़रत से मिलना नहीं
मन से कूड़ा हटा दीजिए, सबको पंकज सिखाने लगा
मौलिक-अप्रकाशित
Comment
आदरणीय श्याम नारायण सर, सादर आभार
आ. पंकज जी,
अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई
अर्कान (२१२X 6 ) जैसे प्रतीत हो रहे हैं..
अंतिम दोनों शेरों में शुतरगुर्बा की सूरत बन रही है..
देखिएगा
सादर
2122 122 12 2122 122 122 aआदरणीय पंकज जी लास्ट में १२२ की जगह १२ होगा
इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीका करें सदर
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । |
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