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हृदय अपना जिसनें समंदर किया है-----ग़ज़ल

122 122 122 122

युगों तक जगत में वही जी सका है
हृदय अपना जिसने समंदर किया है

हक़ीक़त से नज़रें हटाने से यारो
कभी झूठ भी क्या कहीं सच हुआ है?

कहाँ रात के मानकों से हो चिपके
उजाले का वाहक तो सूरज रहा है

गरल एकता के लिए पीना होगा
सिखाती सभी को परम शिव कथा है

'सुनो आइनो तुम भी पढ़ लो सुकूँ से
कि 'पंकज' ने सब सामने रख दिया है'  (आदरणीय बाऊजी समर कबीर द्वारा संशोधित)

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 23, 2018 at 5:15pm

आदरणीय तेजवीर सर सादर आभार

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 23, 2018 at 5:14pm

आदरणीय नीलम जी बहुत बहुत आभार

Comment by TEJ VEER SINGH on April 23, 2018 at 2:30pm

हार्दिक बधाई आदरणीय पंकज कुमार जी।बेहतरीन गज़ल।

युगों तक जगत में वही जी सका है
हृदय अपना जिसने समंदर किया है

हक़ीक़त से नज़रें हटाने से यारो
कभी झूठ भी क्या कहीं सच हुआ है?

Comment by Neelam Upadhyaya on April 23, 2018 at 11:02am

आदरणीय पंकज कुमार मिश्रा जी ।  बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल  की प्रस्तुति ।  हार्दिक बधाई

Comment by Samar kabeer on April 22, 2018 at 6:42pm

ख़ुश रहो, अज़ीज़म ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 22, 2018 at 6:34pm

आदरणीय बाऊजी सादर आभार, मेरी समस्या हल हुई। आभार बार बार

Comment by Samar kabeer on April 22, 2018 at 6:31pm

'सुनो आइनो तुम भी पढ़ लो सुकूँ से

कि 'पंकज' ने सब सामने रख दिया है'

'रूह' शब्द स्त्रीलिंग है, इसलिये इसे लेना मुमकिन नहीं है  

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 22, 2018 at 4:48pm

आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम, सुझावों के अनुरूप सुधार कर देता हूँ। अंतिम शेर के लिए समझ नहीं पा रहा, क्या करूँ?

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 22, 2018 at 4:45pm

आदरणीय हर्ष महाजन सर सादर आभार

Comment by Samar kabeer on April 22, 2018 at 9:44am

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

अंतिम मिसरे के लिए निलेश जी लिख चुके हैं ।

मतले के सानी में ',जिसनें' को 'जिसने',दूसरे शैर में 'हटानें' को 'हटाने' और 'यारों' को "यारो" कर लें ।

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