करे सुबह से शाम तक, काम भले भरपूर।
निर्धन का निर्धन रहा, लेकिन हर मजदूर।१।
कहने को सरकार ने, बदले बहुत विधान।
शोषण से मजदूर का, मुक्त कहाँ जहान।२।
हरदम उसकी कामना, मालिक को आराम।
सुनकर अच्छे बोल दो, करता दूना काम।३।
वंचित अब भी खूब है, शिक्षा से मजदूर।
तभी झेलता रोज ही, शोषण हो मजबूर।४।
आँधी वर्षा या रहे, सिर पर तपती धूप।
प्यास बुझाने के लिए, खोदे हर दिन कूप।५।
पी लेता दो घूँट मय, तन जब थककर चूर।
दवा सरीखी सोचता, उसको ही मजदूर।६।
काम करे नित खेत में, फिर भी भूखा पेट।
कोशिश तो उसकी रही, किस्मत को दे मेट।७।
महल रचे नित खूब वो, और रचे दरवार।
बेघर फिर भी खुद रहे, जीवन भर क्यों यार।८।
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
जी ठीक है ।
4थे के बारे में भी सोचिये ।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति, सराहना एवं मार्गदर्शन के लिए हार्दिक धन्यवाद । दूसरे दोहे की दूसरी पंक्ति को इस प्रकार देखें -
शोषण से मजदूर का, हुआ न मुक्त जहान।२।
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब,मज़दूरों की पीड़ा को उजागर करते,मज़दूर दिवस पर अच्छे दोहे लिखे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
दूसरे दोहे में 'मुक्त कहाँ जहान'--10 मात्रा ।
4थे दोहे में 'शोषण हो मज़दूर' को "शोषण हर मज़दूर" करना उचित होगा ।
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