बढ़ते ही नित जा रहे, खादी पर अब दाग
नेता जी तो सो रहे, जनता तू तो जाग।१।
जन सेवा की भावना, आज बनी व्यापार
चाहे केवल लाभ को, कुर्सी पर अधिकार।२।
मालिक जैसा ठाठ ले, सेवक रखकर नाम
देश तरक्की का भला, कैसे हो फिर काम।३।
नेता जी की चाकरी, तन्त्र करे नित खूब
किस्मत में यूँ देश की, आज जमी है दूब।४।
मुखर हुए निज स्वार्थ हैं, गौंण हो गया देश
नेता खुद में मस्त हैं, क्या बदले परिवेश।५।
जाति धर्म तक हो गये, सीमित नेता आज
बचा रहे निज ताज हैं, बेच वतन की लाज।६।
लेकर चलते साथ अब, बड़बोलापन खूब
बरगद खुद को सोचते, होकर नेता दूब।७।
राजनीति को कर दिया, नेता ने व्यापार
जनता को नित वो ठगे, बनकर साहूकार।८।
चिन्ता जिनको देश की, नेता बचे न आज
चाहें चाल कुचाल चल, कायम अपना राज।९।
बन अभिभावक गर करे, हर नेता व्यवहार
सच होगा दिन चार में, जन-जन का उद्धार।१०।
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आ. भाई छोटेलाल जी, प्रशंसा के लिए आभार ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी वर्तमान परिदृश्य पर प्रहार करती अनूठी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
आ.भाई सुरेंद्र जी , इस स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ. भाई समर जी, उपस्थिति, उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए आमार ।
आ. भाई नीलेश जी, उत्साहवर्धन के लिए आभार । साथ ही राजनीति के गटर के सफाई अभियान की शुरूआत के लिए हार्दिक बधाई ।
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन। वर्तमान राजनीति और नेताओं पर व्यंग कसते हुए अच्छे दोहे कहे आपने। बधाई स्वीकार कीजिये
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब,आज के नेताओं की खिंचाई करते उम्दा दोहे लिखे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
पहले दोहे में 'दाग़' और 'जाग' की तुकान्तता सहीह नहीं है,देखियेगा ।
आ. भाई आरिफ जी, अपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
आ. लक्ष्मण जी
अच्छे दोहे हैं जिनके लिए बधाई ...
ये फेलियर हमारी कमज़ोरी है क्यूँ कि हमने इन पाखण्डियों के लिए जगह छोड़ी हुई है ...
अब वक़्त आ गया है कि राजनीति को घृणित मानने की जगह उस में उतर कर यह गटर साफ़ की जाय ताकि निर्मल जल प्रवाहित हो सके..
मैं शुरुआत कर चुका हूँ...इनके कार्यालयों में घुस कर अपना झंडा गाड़ने की ...
सादर
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब,
नेताओं के चरित्र को उजागर करते बेहतरीन दोहे कहे । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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