घर को घर सा कर रखे, माँ का अनुपम नेह
बिन माँ के भुतहा लगे, चाहे सज्जित गेह।१।
माँ ही जग का मूल है, माँ से ही हर चीज
माता ही धारण करे, सकल विश्व का बीज।२।
सुत के पथ में फूल रख, चुन लेती हर शूल
हर चंदन से बढ़ तभी, उसके पग की धूल।३।
शीतल सुखद बयार बन, माँ हरती सन्ताप
जिसको माँ का ध्यान हो, करे नहीं वो पाप।४।
रखे कसौटी पाँव को, कंटक बो संसार
करे सरल हर राह माँ, आँचल उसे बुहार।५।
जायों को भर नींद दे, रातों को खुद जाग
माँ के जैसा है भला, किसमें यह अनुराग।६।
सुत को लगती ठेस जब, माँ को होती पीर
समझे सुत कैसे भला, सुख दुख आँखों नीर।७।
माँ का मन वो सिन्धु सा, हर दुख जहाँ समाय
लेकिन घन उठ नेह के, पलपल सुख बरसाय।८।
माँ वो पुस्तक ईश की, शब्द-शब्द में प्यार
जिसकी सीखें तारती, भवसागर के पार।९।
सबको ममता दान दे, हरपल जिसका आब
माँ वो साहूकार है, रखती नहीं हिसाब।१०।
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आ. भाई रमबली जी, सादर अभिवादन । उपस्थिति और उत्तम सुझाव के लिए आभार।
आदरणीय लक्षमण भाई जी सभी दोहे सुन्दर और सार्थक हुए हैं हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
प्रथम दोहे के प्रथम चरण को 'घर को घर जैसा रखे' करें तो कथ्य और बेहतर हो जाएगा।
तीसरे दोहे के तृतीय चरण को 'हरिचंदन सम श्रेष्ठ है' करके देखें कथ्य और सुंदर हो जाएगा।
चौथे दोहे के प्रथम पद को 'शीतल सुखद बयार माँ, हरती हर संताप।' इस प्रकार करने पर सुंदरता और बढ़ जाएगी।
शेष सब शुभ शुभ।सादर
आ. भाई आरिफ जी, उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब,
माँ की गरिमा-गौरव को रेखांकित करते बेहतरीन दोहे । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आ. भाई आषुतोश जी, उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से लेखन सफल हुआ । स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार ।
आदरणीय भाई लक्ष्मण जी बहुत ही उम्दा दोहे हुए हैं ..माँ की सार्थकता और ममता को स्थापित करते शानदार दोहों के लिए हादिक बधाई सादर
जनाब लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर जी आदाब,मातृ दिवस पर बहुत उम्दा और सार्थक दोहे रचे आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
दूसरे दोहे में 'चीज़' और 'बीज' की तुकान्तता सहीह नहीं है,देखियेगा ।
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