For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- ये क्या हो गया है भले आदमी को // दिनेश कुमार

122----122----122----122
.
जो आँखों से दिखती नहीं है सभी को
मैं क्यों ढूँढ़ता हूँ उसी रौशनी को
.
जो समझे मेरे दिल की सब अन-कही को
मैं क्या नाम दूँ ऐसे इक अजनबी को
.
सुधारेगा कौन आपके बिन मुझे अब
मुझे डाँटने का था हक़ आप ही को
.
भले रोज़मर्रा में हों मुश्किलें ख़ूब
बहुत प्यार करता हूँ मैं ज़िंदगी को
.
कसौटी पे परखे जो किरदार अपना
भला इतनी फ़ुर्सत कहाँ है किसी को
.
तुम्हें नूरे-जाँ भी दिखेगा इसी में
कभी ग़ौर से देखना तीरगी को
.
सराबों में कब तक भटकता रहेगा
तू दे अब तवज्जोह भी ख़ुद-आगही को
.
'दिनेश' अपने बारे में ही सोचता है
ये क्या हो गया है भले आदमी को
.
मौलिक व अप्रकाशित

Views: 789

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Shukla on May 7, 2018 at 6:09pm

आदरणीय दिनेश जी बड़ी अच्छी ग़ज़ल आपने कही रवानी भी खूब है इस पर हुई चर्चा से कई बातें सीखने को मिली सीधी जुबान के शेर पर आपने अच्छी कोशिश की है उस पर आए सुझावों से रवानी और भी ज्यादा बढ़ गई है दिली मुबारकबाद कुबूल कीजिए

Comment by नाथ सोनांचली on May 7, 2018 at 5:39pm

आद0 दिनेश जी सादर नमन। बढिया ग़ज़ल कही आपने। आद0 समर साहब के इस्लाह से और निखर गयी ग़ज़ल। बहुत बहुत बधाई आपको।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2018 at 5:42pm

आ. भाई दिनेश जी अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by Harash Mahajan on May 6, 2018 at 9:49am

वाह आदरणीय दिनेश जी सच में आपके अहसास आ०समर जी औऱआ० नीलेश जी की इस्लाह के बाद कितने मुखर होकर

उभरे हैं । बहुत खूब ग़ज़ल हुई है ।

'बता नाम क्या दूँ मैं उस अजनबी को' ..कितना मर्म है इसमें ।

बधाई ।

सादर ।

Comment by दिनेश कुमार on May 6, 2018 at 5:44am

अब comments post हो रहे हैं, अजीब है। ☺

Comment by दिनेश कुमार on May 6, 2018 at 5:43am

तहे दिल से आभार आ. श्याम नारायण जी। इनायत

Comment by दिनेश कुमार on May 6, 2018 at 5:41am

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर जी। हौसला अफ़ज़ाई बहुत काम आती है।

आपके कहे अनुसार हर अनकही कर लिया है। शुक्रिया सर। 

Comment by दिनेश कुमार on May 6, 2018 at 5:39am

Comment by Samar kabeer on May 5, 2018 at 9:27pm

जनाब दिनेश जी आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

कुछ सुझाव हैं,अगर पसन्द-ए- ख़ातिर हों ।

मतले का ऊला मिसरा यूँ करें :-

'जो आँखों से दिखती नहीं है किसी को'

दूसरे शैर के ऊला के लिए निलेश जी का सुझाव बहतर है, सानी यूँ करें :-

'बता नाम क्या दूँ मैं उस अजनबी को'

तीसरे शैर का ऊला यूँ करें :-

'सुधारेगा अब कौन मुझको बताओ'

4थे शैर के ऊला में 'ख़ूब' की जगह "पर" कर लें ।

सातवें शैर का सानी यूँ करें :-

'ज़रा देख आवाज़ देकर ख़ुदी को'

Comment by Shyam Narain Verma on May 5, 2018 at 11:36am
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service