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हर कली को अजब शिकायत है,

2122 1212 22
*************

हर कली को अजब शिकायत है,
इश्क़ करना भ्रमर  की आदत है ।

इश्क़ दरिया है उर समंदर भी,
जब तलक़ मुझमें तू सलामत है ।

गम से उभरा तो मैंने जाना ये,
गर है साया तेरा तो ज़न्नत है ।

किसको किसके लिए है हमदर्दी,
हर तरफ फैली बस अदावत है ।

जब धुआँ अपने घर से उट्ठे तो,
कर यकीं रिश्तों में सियासत है

************

मौलिक एवं अप्रकाशित

हर्ष महाजन

Views: 678

Comment

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Comment by Harash Mahajan on May 3, 2018 at 9:46pm
ओह !आदरणीय समर कबीर जी आदाब । 

शुक्रिया प्रोत्सआहित टिप्पणी देने के लिए सर ।



दोनों शेर देखिये सर



हर कली को अजब शिकायत है,
इश्क़ क्युँ कर भ्रमर की आदत है ।



किसको किसके लिए है हमदर्दी,
हर तरफ फैली बस अदावत है ।



सादर ।
Comment by Samar kabeer on May 3, 2018 at 6:04pm

जनाब हर्ष महाजन जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले के सानी मिसरे में 'भँवर' शब्द बदल दीजिये,तरही मुशायरे में इस ओर इशारा किया था,बहुत जल्द भूल गए आप?

4थे शैर में क़ाफ़िया ग़लत है,आप "मुख़ालिफ़त" कहना चाहते हैं,इसे बदलने का प्रयास करें ।

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