For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समाज सेवा - लघुकथा –

समाज सेवा - लघुकथा –

दद्दू नब्बे का आंकड़ा पार कर चुके थे। पूरा परिवार शहर में बस गया था लेकिन दद्दू गाँव में अपनी पुस्तैनी हवेली में ही पड़े थे। उनकी देखभाल और तीमारदारी के लिये बड़ी बहू साथ में थी। खाने पीने से ज्यादा दद्दू की दवाईयों का ख्याल रखना पड़ता था। यूं कहो कि दद्दू दवाओं के सहारे ही जीवित थे। दद्दू की दुनियाँ एक बिस्तर पर सिमट चुकी थी।

"दद्दू, मुँह खोलो, दवा खालो"?

"बहू, अब ये दवाओं का सिलसिला खत्म कर दो। एक बार बस छुट्टन को बुलादो। उससे मिलकर अलविदा कह लें"।

"दद्दू, आपको तो मालूम ही है कि छुट्टन को इतनी फ़ुर्सत कहाँ मिलती है"?

"ऐसा क्या काम करता है छुट्टन"?

"वही खानदानी धंधा। राजनीति और समाजसेवा"।

"पर बिल्लू तो कह रहा था कि छुट्टन शहर का सबसे नामी गुंडा है"?

"अब जिसमें जितनी समझ है, वही तो बोलेगा"।

"बहू, बिल्लू एक पढ़ा लिखा,समझदार और जिम्मेदार लड़का है। शहर में बहुत बड़ा ठेकेदार है"।

"फिर किसलिये परिवार की बदनामी करते फिरते हैं"?

"वह तो यह भी बता रहा था कि छुट्टन ज़मीन जायदाद के अवैध कब्जे भी करता है। गैर कानूनी कामों की सुपाड़ी भी लेता है"?

"दद्दू, आजकल यही सब तो राजनीति और  समाजसेवा के काम है"।

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 728

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on May 10, 2018 at 12:58pm

हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 10, 2018 at 12:57pm

हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 9, 2018 at 9:33pm

मुहतरम तेजवीर साहिब ,उम्दा लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by vijay nikore on May 9, 2018 at 8:29pm

बहुत ही सुन्दर लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 8, 2018 at 5:29pm

हार्दिक आभार आदरणीय नीलम उपाध्याय जी।

Comment by Neelam Upadhyaya on May 8, 2018 at 3:23pm

आदरणीय तेजवीर सिंह साहब, नमस्कार । यही आज की राजनीति और समाजसेवा है – बहुत खूब । हार्दिक बधाई ।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 8, 2018 at 2:34pm

हार्दिक आभार आदरणीय बबिता गुप्ता जी।

Comment by babitagupta on May 8, 2018 at 1:22pm

आदरणीय सर जी,आभार,राजनीति और समाज सेवा पर जो कटाक्ष किया हैं काबिले तारीफ़,रचना प्रस्तुति पर बधाई.

Comment by TEJ VEER SINGH on May 8, 2018 at 10:23am

हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी। आपने जिस तरह विश्लेषण करते हुए लघुकथा के कथ्य और लेखन शैली की व्याख्या की, मन अभिभूत हो गया। पुनः आभार।

Comment by नाथ सोनांचली on May 8, 2018 at 10:15am

आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन। अवैध कारोबार ही तो आज की राजनीति और समाजसेवा है, क्या खूब नब्ज पकड़ी आपने आज के सूरतेहाल का। एक लेखक को सदैव समाज के प्रति जागरूक रहना चाहिए और अपने लेखों/ रचनाओं/ लघुकथाओं के माध्यमों से इन्हें उकेरते भी रहना चाहिए। आपकी पैनी दृष्टि को सलाम। इस उम्दा लघुकथा पर कोटिश बधाइयाँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service