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नियति का अंत

प्लास्टर उतरी दीवारें खुद को अश्लील पोस्टरों में लपेटे कमरे में गुड़ी - मुड़ी पड़ी देह को खामोशी से देख रहीं थीं। दीवारों की सीलन सिसकियों के शोर के साथ गहरी होती जा रही थी।
" ओहो, तो तुम कौन सा पहली बार ऐसा होते देख रही हो! इतने सालों में न जाने कितनी ही बार तुमने ये सब देखा है", बन्द दरवाजे ने रुआंसी होती दीवारों को देखकर कहा। " पहले तो कभी तुम लोगों को ऐसा परेशान होते नही देखा!"
" चुप कर ! जन्म से यही दुनिया तो देखी थी, लगता था यही नियति होती है। मगर रात में सिसकती मजबूरियों ने जब हमसे लिपट- लिपट कर अपनी कहानी सुनाई तब सच का पता चला।", भूरी दीवार ने दरवाजे को डपटते हुए कहा।
" आज इस बेचारी की बदनसीबी इसे हमारे पास ले आई है। हाय, अभी बच्ची ही तो है ये , कल अपने सीने से गुड़िया को चिपका कर बैठी मुझे कितनी ही देर तक देखती रही थी।", बिस्तर के सामने वाली दीवार ने दर्द से भरी आवाज में कहा।
" आपा, मेरा जी भी दुखता है जब इन मजबूरियों के लुटेरों का पहरेदार बना कर मुझे खड़ा कर दिया जाता है, मगर चुपचाप देखते रहने के सिवा हम कुछ नही कर सकते ", दरवाजे ने अपने तेवर ढीले करते हुए सिर झुका लिया।
तभी बाहर से आती कुछ जोड़ी पदचापों को सुनकर सभी चुप हो गए।
" इसे तैयार करो, आज इसकी नथ उतराई होगी," दरवाजे के पल्लों को परे धकेलते हुए एक रौबदार महिला की आवाज सुनकर उस लड़की ने अपना सिर उठा कर देखा। अचानक चीते सी फुर्ती दिखाते हुए लड़की बाहर की तरफ भागी।
" पकड़ो इसे", महिला जोर से चिल्लाई मगर तभी छत ने बिना किसी चेतावनी के अपनी शहतीर उस महिला पर गिरा दी।
ये देखकर दरवाजा भी जोश में आ गया और पल्ले हिला हिलाकर कमरे से बाहर जाने वाले लोगों को रोकने की कोशिश करने लगा। इससे पहले कि और लोग उस लड़की को पकड़ने भागते नींव के पत्थरों ने अपने पैर समेटने शुरू कर दिए। कोठे की सभी दीवारें गिर रही थीं।" चलो, कम से कम एक ज़िन्दगी तो इस नरक से बची", धराशाही होने के पहले भूरी दीवार ने सड़क पर भागती लड़की को देख संतुष्टि से कहा।
मेघा राठी
मौलिक स्वरचित

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Comment

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Comment by vijay nikore on May 28, 2018 at 12:21pm

लघु कथा अच्छी लिखी है। हार्दिक बधाई।

Comment by Mahendra Kumar on May 28, 2018 at 11:01am

उम्दा लघुकथा है आदरणीया मेघा राठी जी. हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.

Comment by TEJ VEER SINGH on May 26, 2018 at 12:29pm

हार्दिक बधाई आदरणीय मेघा जी। लाज़वाब लघुकथा।

Comment by Neelam Upadhyaya on May 24, 2018 at 3:51pm

आदरणीय मेघा राठी जी, नमस्कार।  प्रतीकात्मक और हृदयस्पर्शी रचना।  प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।

Comment by babitagupta on May 24, 2018 at 1:49pm

आदरणीया दी,संकेतात्मक शैली में लडकी के बचाव में आई सभी निर्जीव वस्तुओं का दर्शाना ,यह संदेश प्रेषित करता हैं की सहयोग और समुकिकता से बढ़ते अपराधों को रोका जा सकता हैं,प्रस्तुत रचना के लिए ढेर सारी बधाइयां स्वीकार करे.

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 24, 2018 at 1:27am

बहुत परिश्रम से तैयार की गई बढ़िया प्रतीकात्मक/मानवेत्तर शैली की लघुकथा के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरमा मेघा राठी जी। थोड़ा और समय देकर कहीं-कहीं स्पष्टता बढ़ाई जा सकती है। कोठे की सभी निर्जीव चीज़ों को प्रतीक व मानवीकरण द्वारा बढ़िया रचना।

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