"हमने तो सुना है कि बहुत ज़रूरी होने पर देर रात तक कोर्ट लग जाती है; वकील और जज साहिबान सब हाज़िर हो कर फैसले करते, करवाते हैं?" धरनीधर ने अपने विधायक महोदय से यह कहते हुए पूछा - "हमारे पास सारे सबूत हैं! सुनीता की आबरू लूटने वालों को तीन साल बाद भी कोई सज़ा न हुई? आप चाहें, तो सब तुरंत ही निबट जाये!"
"दरअसल सब लेन-देन के कारोबार हैं! तुमने न तो कोई बड़ा वकील किया है, न ही तुम्हारे वकील की वैसी कोई पहुंच है!" ऐसी कुछ दलीलें सुनाते हुए विधायक ने कहा - "तुम्हारे पास जितना जो कुछ बचा है, उससे बाक़ी ज़िन्दगी चुपचाप गुज़ार परिवार के साथ, इसी में तुम्हारा भला है ऐसी लहर में!"
"मेरा वकील है तो अनुभवी और अक़्लमंद! इस लहर में शामिल नहीं है, बस!" मुख्य द्वार की ओर रुख़ करते हुए धरनीधर ने कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
बड़े वकील... उनकी पहुँच और न्याय ... पानी और तेल के समान हैं ... हम एक किस्सा ऐसा भी जानते हैं जहाँ बड़े वकील ने ही फ़र्ज़ी गवाह का इन्तज़ाम करने के लिए किसीको सलाह दी। आपकी हर लघु कथा कुछ गहरे उतर जाती है, आ० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी।
मेरी इस रचना पर समय देकर अवलोकन कर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के साथ अपने विचार सांझा करने के लिये तहे दिल से बहुत- बहुत शुक्रिया मुहतरमा नीता कसार साहिबा, मुहतरमा नीलिमा उपाध्याय साहिबा, जनाब तेजवीर सिंह साहिब, जनाब महेंद्र कुमार साहिब और जनाब सुशील सरना साहिब।
बड़े वक़ील को प्रतीक बना सुंदर कथा लिखी है ।आजकल इन्हीं लोगों की पौ बारह है ।बधाई कथा के लिये आद० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।
आदरणीय शेख उसमानी जी, बड़े वकीलों पर व्यंग्य कसती बढ़िया लघुकथा । प्रस्तुति के लिए लिए हार्दिक बधाई ।
'बड़े' वकीलों पर अच्छा व्यंग्य किया है आपने आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. हार्दिक बधाई प्रेषित है. सादर.
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। अच्छी व्यंगपूर्ण लघुकथा।
वाह वर्तमान हालात पर सुंदर लघु कथा आदरणीय ... हार्दिक बधाई।
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