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बिजली – लघुकथा -

 बिजली – लघुकथा -

"गुड्डो बेटा, क्यों इस लालटेन की रोशनी में आँखें फ़ोड़ रही है। थोड़ा इंतज़ार करले, बिजली का"।

गुड्डो के कुछ बोलने से पहले ही उसकी माँ बोल पड़ी," तुम्हारी बिजली ना आज आयेगी ना कल। छोरी को लालटेन से ही पढ़ने दो"।

"अरे भाग्यवान, मैं तो इसके भले की बात कर रहा हूँ। लड़की जात है। चश्मा लग गया तो शादी में भी अड़चन पड़ेगी"।

"कुछ ना होता।बबली इसी लालटेन से पढ़कर डाक्टर बन गयी और आँखें भी सही सलामत हैं।इस बिजली के भरोसे कब तक बैठे रहो"।

"आज पंचायत में विधायक जी आये थे।बोल रहे थे कि सब कागज पूरे हो गये ।अब पूरा गाँव बिजली की रोशनी से झकाझक हो जायेगा"।

"एक नंबर का झूठा है।साल भर हो गयी बिजली के तार खिचे।तमाम रुपये खर्च करा दिये"।

"धीरे बोल गुड्डो की माँ"।

"क्यों डर लगता है?

"भागदौड़ तो कर रहा है ना। सरकारी काम में समय तो लगता ही है"?

"तो फिर अखबार और टी वी में झूठ में ही खबर क्यों दे दी कि राज्य के हर गाँव में बिजली चालू हो गयी"?

इसी बीच गुड्डो बोल पड़ी,"अम्मा क्या सारे नेता ऐसे ही झूठे वादे करते हैं"?

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on June 10, 2018 at 5:40pm

हार्दिक आभार आदरणीय बबिता गुप्ता जी।

Comment by babitagupta on June 10, 2018 at 12:51pm

वर्तमान प्रशासनिक व्यवस्था व नेताओं के थोथे वायदे को उजागर करती लघु कथा.बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय सर जी.

Comment by TEJ VEER SINGH on June 10, 2018 at 12:01pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 10, 2018 at 11:11am

बेहतरीन विचारोत्तेजक सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब।

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