फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन
हूँ बहुत हैरान पिछले कुछ दिनों से
ज़ीस्त है हलकान पिछले कुछ दिनों से
चाँद भी है आजकल कुछ खोया खोया
रातें हैं वीरान पिछले कुछ दिनों से
आदमी हूँ आदमी के काम आऊँ
है यही अरमान पिछले कुछ दिनों से
कौड़ियों के भाव बिकती हैं अनाएं
मर गया ईमान पिछले कुछ दिनों से
जोश में है भीड़ 'ब्रज' आक्रोश भी है
बस नहीं है जान पिछले कुछ दिनों से
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
आदरणीय मोहित जी आपका हार्दिक आभार..सादर
स्वागत संग आभार आदरणीया रक्षिता जी..सादर
आदरणीय बृजेश जी नमस्कार, "बस नहीं है जान पिछले कुछ दिनों से" खूबसूरत गजल के साथ बहुत ही बेहतरीन पंक्ति ...
बहुत बहुत मुबारकबाद ...
उत्साहवर्धन के लिए आपका आभार आदरणीय महेंद्र जी
आभार संग नमन आदरणीय शर्मा जी
स्वागत संग आभार आदरणीय गुमनाम जी
हार्दिक वंदन एवं अभिनदंन आदरणीय तेजवीर सिंह जी
बहुत बहुत आभार आदरणीय धामी जी
आदरणीय बृजेश जी, बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है आपने. हर शेर बढ़िया है. हार्दिक बधाई आपको इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल पर. सादर.
जोश में है भीड़ 'ब्रज' आक्रोश भी है
बस नहीं है जान पिछले कुछ दिनों से
वाह लाजबाब गजल
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