मापनी - 2122 2122 2122
आपसे इतनी मुहब्बत हो गई है
लोग कहते हैं कि आफत हो गई है
नींद मेरी हो न पायी थी मुकम्मल
फिर कोई मीठी शरारत हो गई है
ढूँढता है रोज मिलने का बहाना
आपकी इस दिल को’ आदत हो गई है
शुक्रिया जो आप मेरे घर पधारे
रौशनी में और बर्कत हो गई है
सख्त पहरे हो गए राहों में जब से
और भी मजबूत चाहत हो गई है
दिल को देकर दर्द ही पाया है लेकिन
जिन्दगी अब खूबसूरत हो गई है
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
जी,धन्यवाद ।
आदरणीय Samar kabeer जी सदैव स्वागत है आपका
मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद ।
आदरणीय समर कबीर जी, आपकी इस्लाह का तहे दिल से शुक्रिया, यूँ ही स्नेह बनाये रखें, आवश्यक परिमार्जन कर लेता हूँ
सादर नमन आपको
'रौशनी में और बर्कत हो गई है'
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
'ढूँढता हर रोज मिलने का बहाना'
इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है 'हर रोज',इस मिसरे को यूँ कर लें तो ये ऐब निकल जायेगा:-
'ढूँढता है रोज़ मिलने का बहाना'
"शुक्रिया है, आप मेरे घर पधारे
रौशनी में कुछ इज़ाफ़त हो गई है'
इस शैर के ऊला मिसरे में 'है' शब्द भर्ती का है, और सानी मिसरे में 'इज़ाफ़त' क़ाफ़िया सहीह नहीं,'इज़ाफ़त' का अर्थ है निस्बत और एक कलमे को दूसरे से मिलाने के लिए जो ज़ेर (चिन्ह)लगाया जाता है,आपने इस शब्द को बढ़ोतरी के लिए समझा है जबकि बढ़ोतरी के लिए शब्द होता है "इज़ाफ़ा", इस शैर को यूँ कर सकते हैं :-
"शुक्रिया,जो आप मेरे घर पधारे
रौशनी और बर्कत हो गई है'
'दिल लिया है या दिया है कुछ भी कहिये'
इस मिसरे में भी ऐब-ए-तनाफ़ुर हे 'दिल लिया',इस मिसरे को यूँ कर लें तो ये ऐब निकल जायेगा :;
'दिल दिया है या लिया है कुछ भी कहिये'
बाक़ी शुभ शुभ ।
आदरणीया Rakshita Singh जी आपका दिल से शुक्रिया
आदरणीय बसंत जी नमस्कार,
बहुत ही बेहतरीन गजल, मुबारकबाद कुबूल कीजिए ।
आदरणीय Mahendra Kumar जी दिल से शुक्रिया आपका
ख़ूबसूरत ग़ज़ल है आदरणीय बसंत जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए इस लाजवाब प्रस्तुति पर. सादर.
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