सुबह जरूर आयेगी - लघुकथा –
वह रात सूरज और संध्या के जीवन की ऐसी रात थी कि दोनों की ही अग्नि परीक्षा की घड़ी आगयी थी। कौन खरा उतरेगा , यह तो ऊपर वाला ही तय करेगा ।
दोनों की शादी को जुम्मे जुम्मे आठ दिन भी नहीं हुए थे कि दोनों ने अकेले पिक्चर देखने, वह भी नाइट शो, का प्रोग्राम बना लिया। शहर के बिगड़े माहौल को देखते हुए घर में कोई भी उनके इस फ़ैसले से खुश नहीं था। मगर सूरज की ज़िद और अति आत्मविश्वास के आगे सब चुप थे। क्योंकि वह एक फ़ौज़ी अफ़सर जो था।
फ़िल्म देखकर निकले तो सूरज की बाइक पंचर थी। रात को एक बजे बाइक को सुधरवा भी नहीं सकते थे और कहीं छोड़ने की भी व्यवस्था नहीं हो सकी। अतः बाइक को पकड़ कर दोनों पैदल ही घर चल दिये। इस समस्या के कारण दोनों ने एक छोटा मगर सुनसान रास्ता पकड़ लिया। यह उनके जीवन की भयंकर भूल साबित हुई।
रास्ते में कुछ बदमाशों ने उन पर हमला कर दिया। सूरज को घायल कर हाथ पैर बांध दिये। और संध्या के साथ वह सब कुछ हुआ जो नहीं होना चाहिये था। वह भी उसके फ़ौज़ी पति सूरज की उपस्थिति में। बदमाश भाग गये।
संध्या ने हिम्मत कर सूरज के हाथ पैर खोले। दोनों एक दूसरे से लिपटे हुए, अवाक स्थिति में बहुत देर तक रोते रहे। दोनों ने कुछ पल विचार विमर्श किया और घर चल दिये।
घर में सब सो चुके थे लेकिन दोनों की ऐसी अस्त व्यस्त दशा देखकर सब उठ गये। लेकिन वे दोनों मौन थे। घर वालों के तरह तरह के सवालों से त्रस्त हो रहे थे। घरवालों के प्रश्न अब क्रोध भरी झुंझलाहट में तब्दील हो रहे थे।
आखिरकार सूरज ने मुँह खोला,"कोई विशेष बात नहीं है। बाइक स्पीड में थी, पंचर होगयी। बेलेंस बिगड़ गया। बाइक स्लिप हो गयी| बस मामूली सी चोटें हैं"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी।
आदरणीय तनवीर जी आपकी हर उम्दा लघु कथा की कड़ी में एक और शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी।
उम्दा लघुकथा है आदरणीय तेज़ वीर सिंह जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।
बेहतरीन सृजन। हार्दिक बधाई जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
हार्दिक आभार आदरणीय नीलम जी।आपकी विस्तार सहित विवेचनात्मक टिप्पणी पढ़कर अच्छा लगा।आपको लघुकथा का भाव और संदेश पसंद आया।मेरा प्रयास फ़लीभूत हो गया।
हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना जी।आपकी शंका उचित है। रात को एक दो बजे कोई बाहर से आता है तो कोई ना कोई तो दरवाजा खोलेगा ही। फिर ऐसी दशा देखकर निश्चित ही शोर शराबा होगा तो दूसरे लोग भी जागेंगे।यह तो बहुत सामान्य सी बात है।अकसर घरों में होती है।शायद आपने कभी ध्यान नहीं दिया।सादर।
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