For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कभी मुझे इस दुनिया में रहने का ढब न आएगा ...

कौन किसी के अश्रु पिएगा, कौन घाव सहलाएगा ...
पत्थर दिल वालों की नगरिया में तू धोखा खाएगा ...

माँगेगा दो बोल प्रेम के, तुझे भिखारी समझेंगे ...
जो कुछ तेरे पल्ले में है, वो भी आन गँवाएगा ...

किसके मन में कितना छल है, किसका मन कितना उज्जवल है ...
इसे समझना बड़ा सरल है, फिर भी समझ न पाएगा ...

कागज़ के ये फूल दूर से कितने अच्छे लगते हैं ...
रंग - रूप, अदभुत स्वरुप से मन को कितना ठगते हैं ...
फूलों की सुवास का कण भी, साँसों में न समाएगा ...

अपनेपन की चाह मुझे भी यहाँ - वहाँ भटकाती है ...
चोट कभी मेरे कोमल से मन को भी लग जाती है ...
कभी मुझे इस दुनिया में रहने का ढब न आएगा ...

 कौन किसी के अश्रु पिएगा, कौन घाव सहलाएगा ... Raavi (prabha)

Views: 488

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by mohinichordia on September 6, 2011 at 12:15pm

मांगेगा दो बोल प्रेम के ........

अपनेपन की चाह ...बहुत मार्मिक पंक्तियाँ हैं .बहुत पसंद  आयीं


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 24, 2011 at 10:18am

किसके मन में कितना छल है, किसका मन कितना उज्जवल है ...
इसे समझना बड़ा सरल है, फिर भी समझ न पाएगा ...

 

बहुत कठिन है डगर पनघट की ...........छली को समझना बहुत कठिन है भाई , जब तक आप छला नहीं जाते तब तक आप समझ नहीं सकेंगे, यदि आप ने समझ ही लिया तो सामने वाले में छल  का गुण है ही नहीं |

 

बहरहाल बहुत ही खुबसूरत रचना , बढ़के स्वीकार करे प्रभा जी |

Comment by Prabha Khanna on June 23, 2011 at 10:11am
..Dhanyavaad Vivek sir...
Comment by विवेक मिश्र on June 22, 2011 at 10:45pm
/अपनेपन की चाह मुझे भी यहाँ - वहाँ भटकाती है ...
चोट कभी मेरे कोमल से मन को भी लग जाती है ...
कभी मुझे इस दुनिया में रहने का ढब न आएगा/- खुद के काफी करीब लगीं ये पंक्तियाँ. सुन्दर रचना.
Comment by Prabha Khanna on June 22, 2011 at 7:58pm
आदरणीय मित्रों, काव्य रचना को सराहने के लिए हार्दिक धन्यवाद ...

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 21, 2011 at 9:46pm

कोमल किन्तु शाश्वत भावनाओं का सुन्दर प्रस्तुतिकरण.

Comment by jahir on June 21, 2011 at 7:40pm

nice,such hi kaha ha rehne ka dhag nahi aaya.

 

Comment by Shanno Aggarwal on June 21, 2011 at 5:13pm

प्रभा, अपनी रचना में बेहतरीन तरीके से दुनिया की सच्चाई को उतारा है तुमने.

''कागज़ के ये फूल दूर से कितने अच्छे लगते हैं ...
रंग - रूप, अदभुत स्वरुप से मन को कितना ठगते हैं ...''

Comment by प्रदीप सिंह चौहान on June 21, 2011 at 12:03pm
किसके मन में कितना छल है, किसका मन कितना उज्जवल है ...
इसे समझना बड़ा सरल है, फिर भी समझ न पाएगा .......... behad umda.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार अच्छी घनाक्षरी रची है. गेयता के लिए अभी और…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करती सुन्दर प्रस्तुतियाँ हैं…"
1 hour ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   दिखती  न  थाह  कहीं, राह  कहीं  और  कोई,…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  रचना की प्रशंसा  के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार|"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  घनाक्षरी के विधान  एवं चित्र के अनुरूप हैं चारों पंक्तियाँ| …"
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी //नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो…"
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में धार जल की शांत है,या…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया, उतरा मधुमास जो,…"
13 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++ कुंभ उनको जाना है, पुन्य जिनको पाना है, लाखों पहुँचे प्रयाग,…"
16 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक , पोस्ट कुछ देर बाद  स्वतः  डिलीट क्यों हो रहा है |"
16 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service