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लघुकथा- रिसते खूनी नासूर

सुबह से ठंडे चूल्हे को देख आहें भरती वह अपनी छः वर्षीय बेटी और तीन वर्षीय बेटे को पास बिठाए गहरे मातम में ड़ूबी थी। उसे लकवा सा मार गया था। उसका मस्तिष्क मानो सोचने-विचारने की क्षमता खो बैठा था। पूरी रात उसने वहीं जमीन पर बैठे गुज़ार दी थी। दोनों बच्चे भी वहीं उसकी गोदी में पड़े- पड़े कब सो गये थे उसे कोई होश ही नहीं था। पड़ोस की बूढ़ी अम्मा ही बच्चों के लिए खाना ले आई थी। 

" आह..! अब ऐसे घिनौने पाप का साया मेरे और इन बच्चों के सिर पर हमेशा मँड़राता रहेगा।"

उसकी दुःखभरी कराहें निकल रही थीं ।

अपना बिस्तर उसे काँटों और आग की लपलपाती शैया सा महसूस हो रहा था। अपने शरीर पर पति के स्पर्श को याद कर उसे यूँ लगता मानो साँप-बिच्छू और कीड़े उस पर बिलबिलाकर रेंग रहे हैं । उसके कानों में तब मानो पिघला गर्म सीसा किसी ने उड़ेल दिया था जब उसने सुना कि उसका पति चार बरस की मासूम के साथ दुष्कर्म के अपराध में पकड़ा गया है..!

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 29, 2018 at 1:56pm

बहुत ही संवेदनशील विषय का चुनाव किया है आपने आदरणीया और कोशिश अच्छी की है उसके लिए बधाई...

Comment by Arpana Sharma on July 24, 2018 at 3:04pm

आदरणीया जनाब समर कबीर जी, श्री तेजवीर जी , आदरणीया नीलम जी एवं बबीता जी, मेरी लघुकथा पर आपके प्रोत्साहित करते उद्गार मुझे और भी बेहतर लिखने के लिए प्रेरित करते हैं। आप सभी का हार्दिक आभार

Comment by Samar kabeer on July 24, 2018 at 12:00pm

मुहतरमा अर्पणा शर्मा जी आदाब,उम्दा लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 23, 2018 at 3:32pm

हार्दिक बधाई आदरणीय अर्पणा शर्मा जी। मार्मिक लघुकथा। आपने एक नाज़ुक विषय पर बेहद सावधानी एवम कुशलता से कलम चलाई है। सराहनीय क़दम।

Comment by Neelam Upadhyaya on July 23, 2018 at 2:50pm

 आदरणीया अर्पणा शर्मा जी, समाज की ज्वलन्त समस्या बन रहे विषय पर अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति। बधाई स्वीकार करें । 

Comment by babitagupta on July 23, 2018 at 1:45pm

गिरती मानवीयता ,होते घृणित अपराधों ने नजदीकी रिश्तों पर से विश्वास उठता जा रहा हैं.आज सन्देहभरा जीवन जीने को मजबूर हो रहे हैंज्वलंत आपराधिक समस्या का रचना द्वारा बेहतरीन प्रस्तुति  हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीया अर्पणा दी.

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