इनआर्बिट माल से सागर ने आफिस के लिए फॉर्मल ड्रेसेस तो खरीद लीं थीं। अभी और ज़रूरी परचेसिंग बाकी थी। तभी अनायास उसकी नज़र एक टॉय सेन्टर पर पड़ी। बड़े से हाल में, एक रिमोट कंट्रोल्ड एयरोप्लेन गोल- गोल चक्कर लगा रहा था। उसे देखते ही सागर को अपना बचपन याद आ गया। अपने होमटाउन के सिटिमार्केट से गुज़रते वक़्त ऐसे ही एक खिलौने की दुकान से उसने चाबी से चलने वाले हवाई जहाज़ को खरीदने की ज़िद की थी और अपनी ज़िद पूरी करवाने के लिए मचल भी गया था। पापा ने शुरू में तो कठोरता से डाँटा फिर प्यार से महीने के आखिरी तारीखों के कारण खरीद पाने में असमर्थता व्यक्त की थी।इसके बाद तो कभी किसी चीज़ के लिए जिद करने की इच्छा ही नहीं हुई। एक अजीब सा सब्र घर कर चुका था उसके अंदर। आज तो हिम्मत करके प्राइज़ भी पूँछ ही लिया।
पूरे 800 रु।
अरे, बहुत महँगा है।
अपना सिटी वाला तो उस समय मात्र 100 रु का ही था।
अब 20 वर्ष भी तो गुज़र गए हैं।
मन ही मन सोचने लगा।
उसका दिल तो कर रहा था, तुरंत खरीद ले। लेकिन फिर पापा का चेहरा सामने आ गया।
"जैसे बोल रहे हों बहुत महंगा है, बेटा।"
डर लग रहा था, अब कहीं फिर कुछ समझाने न लग जाएं।
फिर भी खरीदने के पहले एक बार कॉल करके पूछ तो लूँ ही।
हेलो पापा,
हाँ बेटे,
पापा, मॉल की एक शॉप पर एक हवाई जहाज़ मिल रहा है। असली का नहीं, वही टॉय वाला।
लेकिन महंगा बहुत है। खरीद लूँ क्या ?
कितने का है, बेटे ?
800 रु का।
हाँ, बेटे। अगर तुम्हें पसंद है तो खरीद लो।
"अरे,... ... ...
पापा ने तो हाँ कर दी। वो भी बिना कुछ तर्क वितर्क दिए।”
उन्हें पता है, "कॉलेज केम्पस के बाद मेरे प्लेसमेन्ट की पहली सैलरी मिली है न मुझे, पूरे एक लाख रु।
कहीं पापा को मेरे बचपन की हवाई जहाज़ खरीदने के लिए मचल जाने वाली घटना तो नहीं याद आ
गई।”
परन्तु, आज पापा ... ?
हाँ, लगता है आज पापा बहुत खुश हैं और ... ... ...
और ...
"असमर्थता व्यक्त करने में गौरव महसूस कर रहे हैं।
( मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय मुजफ्फर जी पिता के लिए वाकई बेहद सुखद होता है ऐसा पल ..आदरणीय तेजवीर जी का सवाल मेरे लिए भी एक सवाल है सादर
adaab. badhaayi muzaffer bhai. the last ls the most impressive , effective punchline . told and untold messages in it. father is unable but son is now capable due to good salary. so proud expressed.
जनाब मुज़फ़्फ़र इक़बाल साहिब आदाब,अच्छी लघुकथा हुई,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
जनाब तेजवीर सिंह जी का उठाया प्रश्न मेरे दिमाग़ में भी है?
हार्दिक बधाई आदरणीय मुजफ़्फ़र इक़बाल सिद्दिक़ी जी। बेहतरीन लघुकथा। मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है। जब पिता ने जहाज खरीदने की अनुमति दे दी तो फिर आपने अंतिम पंक्ति में यह क्यों लिखा।"असमर्थता व्यक्त करने में गौरव महसूस कर रहे हैं"।
कभी कभी माता पिता की विवशता बच्चों की इच्छा पूरी ना करने के कारण घर कर जाती हैं,वो टीस कितने भी बड़े हो जाए,मन के किसी कोने छिपी रहती हैं, लेकिन वो वो जीवन की सीख होती हैं। बेहतरीन लघु कथा द्वारा बचपन की छुटपुट यादों को दिलाना।हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
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