मापनी 1222 1222122
जहाँ ईमान का पौधा नहीं है
यक़ीनन बाग वह मेरा नहीं है
इबादतगाह में है शोर केवल
खुदा का जिक्र अब होता नहीं है
भले फूलों सा’ कोमल हो न सच, पर
किसी की राह का काँटा नहीं है
भलाई कर भुला देना है मुश्किल
सभी के बस का' ये बूता नहीं है
किसी की बात को दिल पर न ले जो
कभी अपनों को’ वो खोता नहीं है
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
हृदय से आभार आदरणीय vijay nikore जी आपका
हृदय से आभार आदरणीय Naveen Mani Tripathi जी आपका
बसंत जी, गज़ल अच्छी लिखी है।
//भलाई कर भुला देना है मुश्किल//...... यह बहुत बड़ा सच है।
आ0 वसन्त कुमार शर्मा जी अच्छी ग़ज़ल हुई है ।
आदरणीय gumnaam pithoragarhi जी आपका हृदय से आभार
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आपका हृदय से आभार
आदरणीया Neelam Upadhyaya जी आपका हृदय से आभार
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी आपका हृदय से आभार
वाह अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई .. . ..
वाह बड़ी अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीय शर्मा जी...सादर
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