जीवन की राहें अनजानी,
मंजिल का भी पता कहाँ है.
चले जा रहे अपनी धुन में,
सब कुछ पाना हमें यहाँ है.
कहीं बबूलों के जंगल हैं,
कहीं महकती है अमराई.
फूल शूल के साथ विहँसकर,
फुलवारी में ले अँगड़ाई.
स्वप्न आस का मन आँगन में,
रोज टहलता यहाँ-वहाँ है.
आकर बाढ़ कहीं नफरत की,
तहस-नहस जीवन कर देती.
मगर प्रेम की रिमझिम बारिश,
खाली हर आँचल भर देती.
पुष्प पल्लवित हैं खुशियों के,
त्याग और विश्वास जहाँ है.
सता रहा एकांत कभी तो,
भीड़-भाड़ में भी दम घुटता.
कभी यहाँ पर मान किसी का,
दो रोटी की खातिर लुटता.
सुख का भी सामान बहुत है,
लेकिन सिमटा जहाँ-तहाँ है
बिस्तर पर होते हैं लेकिन,
कहाँ चैन से हम सोते हैं.
रात और दिन खटते रहते,
काम न खत्म कभी होते हैं.
जाना निश्चित, पार जगत के,
पर मन करता कभी न हाँ है.
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय Samar kabeerजी हृदय से आभार आपका, सादर नमन
आदरणीय Sushil Sarna जी दिल से शुक्रिया आपका
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत उम्दा गीत लिखा आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय बसंत जी बहुत ही भावपूर्ण सृजन हुआ है। इस सरस सृजन के लिए हार्दिक बधाई।
हृदय से आभार आदरणीया babitagupta जी आपका
हृदय से आभार आदरणीया Neelam Upadhyaya जी आपका
बेहतरीन रचना जीवन को परिभाषित करती ,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
आदरणीय बसंत कुमार जी, सुन्दर गीत की प्रस्तुति। बधाई स्वीकार करें।
हृदय से आभार आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आपका
आदरणीय शर्मा जी अच्छा गीत हुआ..सादर
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