गुरू-महात्म्य है अपरंपार,
गुरूवर नमन आपको बारंबार,
सर्वप्रथम गुरू हैं मात-पिता,
जग से जोड़ा अपना नाता,
पालन-पोषण-शिक्षा सँभाल,
दायित्वपूर्ण इनका सब संसार,
गुरूवर नमन आपको बारंबार,
ज्ञान दीप प्रज्वलित किये,
अज्ञान-तम सब हर लिये,
अहसान हैं हम पर अपार,
कैसे चुके इस ऋण का भार,
गुरूवर नमन आपको बारंबार,
हमें थे अविदित ईश्वर भी,
उनकी भी प्रतीति गुरू से ही,
गुरू से जाने कर्म के निमित्त,
हताशा में नव-आशा संचार,
गुरूवर नमन आपको बारंबार,
मनो-मालिन्य और विकार,
दृढ़ता से सबका संहार,
त्यज कर अहम्-ईर्ष्या और क्रोध,
कराया जगत-आचार बोध,
सुशोभित किए उत्तम विचार,
गुरूवर नमन आपको बारंबार।
मौलिक एवं अपकाशित
मौलिक एवं अप्रकाशित
मेरी कविता में सुधार/संशोधन हेतु आप सभी के सह्रदय सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी।
Comment
आदरणीय बबीता गुप्ता जी, श्रीमान् बृजेश कुमार जी, मोहतरम जनाब समर कबीर जी, श्रीमान् नवीन मणि त्रिपाठी जी एवं श्रीमान् विजय निकोर जी,
आप सभी की सह्रदय सराहना से मेरी रचना सार्थक हुई और मेरी लेखनी ऊर्जस्व हुई।
बहुत क्षमाप्रर्थी हूँ कि आप सभी के संदेश बहुत देरी से अभी ही देखे। पहले अनजाने में ये संदेश मुझसे छूट गये।
अर्पणा जी, आपकी कविता पढ़ कर आनन्द आ गय। बधाई।
आ0 शर्मा जी गुरु के प्रति अद्भुत उदगार पढ़ कर मंत्र मुग्ध हूँ । हार्दिक बधाई आपको ।
मुहतरमा अर्पणा शर्मा जी आदाब,अच्छी कविता हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
उत्तम गुरु वंदना है आदरणीया..सादर
बेहतरीन शब्दों में गुरु महिमा का वर्णन, हार्दिक बधाई आदरणीया दी।जेठ
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