याद तेरी कुछ इस कदर आए
तुझसे मिलने तेरे नगर आए
तुझको देखा करें हरेक लम्हा
वक़्त ऐसे ही अब ठहर जाए
अच्छी बातें ही बचें तेरे लिए
जो बुरा दौर हो गुजर जाए
बेकरारी है तुझको पाने की
हर तरफ तू ही तू नज़र आए
तेरी खुशबू हो हर तरफ मेरे
मेरी साँसों में ये असर आए
खार चुन लेंगे तेरी राहों से
राह में तेरे बस शजर आए !!
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आ शेख सहजाद उस्मानी साहब
बहुत बढ़िया बातें/संदेश युक्त बढ़िया रचना। हार्दिक बधाइयाँ आदरणीय विनय कुमार जी। आदरणीय सर मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब की टिपणियां/इस्लाह हम सब क लाभान्वित करती रही है। सादर।
//तुझको देखा करें हरेक लम्हा//
ये मिसरा तो आप बदल भी चुके हैं भाई?
ग़ज़ल पर उपस्थित होकर हौसलाअफ़ज़ाई करने के लिए बहुत बहुत आभार आ मुहतरम समर कबीर साहब. आपके द्वारा सुझाये गए परिवर्तन कर देता हूँ. //तुझको देखा करें इसी तरहा // की जगह //तुझको देखा करें हरेक लम्हा // उचित रहेगा या नहीं, कृपया मार्गदर्शन करें.
जनाब विनय कुमार जी आदाब,आजकल ग़ज़लों पर आप अच्छा अभ्यास कर रहे हैं,ये देख कर प्रसन्नता हुई ।
मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं और सानी मिसरे में 'शहर' को "नगर" करना उचित होगा,क्योंकि सहीह शब्द "शह्र" है और इसका वज़्न 21 है ।
/तुझको देखा करें इसी तरहा/
इस मिसरे में 'तरहा' शब्द ग़लत है सहीह शब्द "तरह" या "तर्ह" होता है,मिसरा बदलने का प्रयास करें ।
राह में तेरे बस सजर आए
इस मिसरे में 'सजर' को "शजर" करलें ।
ग़ज़ल अच्छी लगी .. बधाई ..
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