"अपनी तो बहुत ख़ैर-ख़बर हो गई! चलो, अब सुनें, वो दिलवाली का कहिन?" बिहार ने एक-दूसरे के हालात-ए-हाज़रा सुनने-सुनाने के बाद यूपी से कहा।
"दिलवाली! ... अच्छा वोss ... जो अपने को दिलवाली कहती रही? अब कहां रही वैसी!" व्यंग्यात्मक लहज़े में यूपी ने अपना रंगीन गमछा लहरा कर कहा।
"अपन दोनों से तो बेहतर ही है! खलबली और हड़बड़ी तो सब जगह है!" मुल्क के नक्शे पर राजधानी पर दृष्टिपात करते हुए बिहार ने कहा - "दिल तो उसका वाकई पहले से भी बड़ा हो गया है! न जाने कितने किस्म के दवाब, अन्याय और ज़ुल्म सहती रही वो!"
"हां, बलात्कार से लत्कार तक ! ...और धुत्कार मिलती रही सत्कार पाने वालों से! तब भी हिली नहीं!" बिहार की बात की सोदाहरण व्याख्या करने की कोशिश यूपी ने की!
"क़ुदरत भी तो बाढ़ और फिर तबाही रूप में उसे सताती रही! बेचारी सिर्फ चीखती-चिल्लाती रही- "अरे, हमारी कोई नहीं सुन रहा! हमें कोई काम करने नहीं दे रहा!"
"हा हा हा.. ! तुम्हारे यहां तो रेप का तांडव भी होता रहा, ... पर बिहारी न तो डरे, न ही हारे! " अबकी बार एक रंग से सराबोर यूपी ने व्यंग्य कर डाला - "सत्ता-लव है, सत्ता-लव! दिलवालों और जिगरवालों की सहनशीलता, दिलवाली की तरह!"
"क्या मेरी तरह तुम्हें भी लगता है कि ये दिलवाली हो चली है अब दिलजलों की! लगता है मुल्क की राजधानी कहलाने का रुतबा भी खो देगी कालिखें पुतवाने के बाद!" यूपी का समर्थन सा करता बिहार बोला।
"पहले अपने आगामी हालात पर ग़ौर करो बिहारी साहिब। हमारे तो वारे-न्यारे हो गये! तुम भी हमारे ही रंग में रंग जाओ पुराने जमे हुए बदरंगों को धुलवाकर!" प्रलोभन भरी समझाईश देते हुए यूपी ने कह ही दिया - "ये दिलवाली तो गई काम से!"
मुल्क के नक्शे से दिल्ली का नक्शा तीखी टिप्पणियों के तेज़ झौकों से फड़फड़ाकर बोल उठा- "तानाशाहों की, न धौंस-तानों वालों कीsss ...दिल्ली अब भी है दिलवालोंsss की! ताक़त वतन की हमसे है, ह़िम्मत वतन की हमसे है, लोकतंत्र के हम रखवाले!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
रचना पर समय देकर अनुमोदन और विचार साझा करते हुए हौसला अफ़ज़ाई हेतु बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब और जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।राष्ट्रवाद को एक नये रंग में दर्शाती हुयी विचारोत्तेजक लघुकथा।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online