"हैल्लउ! हाउ आs..यू? कैसे हैं जनाब?"
"फाइन! रॉकिंग!".. और आप सब ! कैसा लगता है अब विदेश में?"
"क्वाइट गुड! बट बेटर देन इंडिया! कुछ एक बातें तो 'अनकॉमन और पॉज़िटिव' हैं, लेकिन हम जैसे भावुक भारतीयों के लिए अधिकतर बातें 'कॉमन और निगेटिव' ही हैं पैसे, स्वार्थों की होड़ और 'तकनीक व ग्लोबलाइज़ेशन' की दौड़ में !"
"मतलब तुम सब भी हमारी तरह विदेश में भी ज़माने के साथ नाच ही रहे हो न!"
"हां, यही कह लो! लेकिन अंतर तो है! हम यहां सेहत और सुव्यवस्था के साथ सरकार व देश के साथ सुविधाएं व ख़ुशियाँ हासिल करते हुए नाचते हैं और भारत में तुम सब 'किकी-डांस चैलेंज' वाला ज़ोखिम भरा नृत्य करते रहते हो?"
"क्या मतलब?'
"मतलब यह कि 'बग़ावत व भ्रष्टाचार के पेट्रोल' से 'तरक़्क़ी की कार' कछुए की गति में चलाकर 'मोबाइलों और मीडिया' व सीसीटीवी के कैमरों के सामने तुम लोग सरकार और देश के ख़िलाफ़ 'कठपुतलियों' माफ़िक लेेेकिन ज़ोख़िम भरेे 'किकी-डांस' से करते रहते हो, अंजाम जाने बग़ैर! बेमौत मरते हो, या मर-मर के जीते हो! बेकसूरों को फंसाते या मारते हो; या फंसवाते-मरवाते रहते हो; असुविधाओं और दुखड़ों को वायरल कर-करके, बस!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
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टिप्पणियों द्वारा अनुमोदन और विचार साझा करने हेतु और पुनः स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरमा प्रतिभा पाण्डेय साहिबा, मुहतरमा नीलम उपाध्याय साहिबा , मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब , मुुुहतरमा नीता कसार साहिबा, मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, सम-सामयिक विषय पर अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।
हम भारतीय बेहद भावुक होते है।बिना सोचे समझे नये गेम को अपना लेते है।आपकी कथा में समस्या पर प्रकाश डाला गया पर समाधान होता तो कथा सार्गर्भित होती ।बेशक आप अच्छा लिखते है ।।पर यहाँ लगता है जल्दबाज़ी हो गई ।कथा के लिये बधाई आद० शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हाएदिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।वर्तमान शासन व्यवस्था को केंद्र मानकर देश विदेश के रहन सहन के माध्यम से करारा व्यंग।
व्यवस्था से असहमति व्यवस्था चलाने वालों से असहमति हम सबका मौलिक अधिकार है पर ये असहमति देश के प्रति असहमति क्यों बन जाती है? व्यवस्था चलाने वाले तो आते जाते रहते हैं और लगभग सब एक से ही होते हैं। लग रहा था अंत आते तक कथा में कुछ सकारात्मक होगा पर खेद है नहीं हुआ। विदेश में सब अच्छा और हमारे यहाँ सब खराब निचोड़ ये ही निकला कथा का।
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