भले थोड़ी रुकावट आज है
पतवार के आगे
किनारा भी मिलेगा कल,
हमें मँझधार के आगे.
अमन की क्यारियाँ सींचो,
मुहब्बत को महकने दो.
हृदय में आज अपने तुम,
हमारा दिल धड़कने दो.
न अपने हाथ फैलाओ,
कभी सरकार के आगे.
न पकड़ो हाथ में चाक़ू,
बनाओ मित्र कुछ अपने.
हृदय का पृष्ठ कोरा है,
उकेरो कुछ नये सपने.
नहीं तलवार लगती कुछ,
कलम की धार के आगे
न बम होंगे न बन्दूकें,
न पत्थर बाजियाँ होंगी.
गुलाबों और केसर से,
सजी फिर घाटियाँ होंगी.
घृणा के पैर टिक पायें,
न संभव प्यार के आगे.
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
हृदय से आभार आदरणीय Shyam Narain Verma जी आपका
हृदय से आभार आदरणीया बबिता गुप्ता जी आपका
हृदय से आभार आदरणीय नादिर खान जी आपका
अमन की क्यारियाँ सींचो,
मुहब्बत को महकने दो.
हृदय में आज अपने तुम,
हमारा दिल धड़कने दो....खूबसूरत भाव लिए उत्तम रचना के लिए बधाई आदरणीय बसंत कुमार जी ...
शुरू की चार पंक्तियाँ बहुत ही सुंदर,बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
सुंदर गीत के लिए .दिल से बधाई सादर
आदरणीया Neelam Upadhyaya जी , आपका हृदय से आभार
आपकी उपस्थिति को सादर नमन आदरणीय Samar kabeer जी
आदरणीय बसंत कुमार जी, बहुत ही सूंदर रचना हुई है । प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें।
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत सुंदर गीत हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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