For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लोकतंत्र

 

अर्जी लिए खड़ा है बुधिया,

भूखा प्यासा खाली पेट.

राजा जी कुर्सी पर बैठे,

घुमा रहे हैं पेपरवेट.

 

कहने को तो लोक तंत्र है,

मगर लोक को जगह कहाँ है.

मंतर सारे पास तंत्र के,

लोक भटकता यहाँ-वहाँ  है.

 

रोज दक्षिणा के बढ़ते हैं,

सुरसा के मुख जैसे रेट.

 

राजकुँवर जी की मर्जी है,

टोपी पहनें या फिर पगड़ी.

सारी परजा बाँट रखी है,

कुछ है पिछड़ी, कुछ है अगड़ी.

 

बारी-बारी से करते हैं,

मिल जुल कर सबका आखेट.

 

साइड में हो जाना प्यारे,

जब भी वो निकलें बाजू से.

आलू प्याज अगर मँहगे हों,

काम चला लेना काजू से.

 

कच्छा बनियान बहुत है तुमको,

उनको आवश्यक जाकेट.

 

गठबंधन की गाँठ न टूटे,

नवसिखियों को सिखा रहे हैं.

जिनके पास न धरती उनको,

स्वप्न गगन के दिखा रहे हैं.

 

लोक छुहारा हुआ सूख कर,

हुआ तंत्र का दुगुना वेट.

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 717

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 25, 2018 at 10:25am

आदरणीय नीलम उपाध्याय जी आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by Neelam Upadhyaya on August 24, 2018 at 4:03pm

आदरणीय बसंत कुमार जी, नमस्कार ।  लोकतंत्र पर अच्छे गीत की रचना  हुयी है।  बधाई स्वीकार करें। 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 23, 2018 at 7:33am

आदरणीय डॉ छोटेलाल सिंह जी आपका बेहद शुक्रिया हौसलाफजाई के लिए 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 23, 2018 at 7:32am

आदरणीय  Ajay Tiwari जी आपकी बारीक नजर को सलाम, अभी ठीक करता हूँ इसे 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 23, 2018 at 7:32am

आदरणीय Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" जी आपका दिल से शुक्रिया, सुझाव् अच्छा  है आपका यूंह ही मार्गदर्शन की अपेक्षा 

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on August 22, 2018 at 7:14pm

आदरणीय वसन्त कुमार शर्मा जी यथार्थवादी दृष्टिकोण समाहित की हुई सुंदर रचना के लिए बधाई

Comment by Ajay Tiwari on August 22, 2018 at 1:23pm

आदरणीय बसंत जी, आज के राजनैतिक परिदृश्य पर बहुत सटीक व्यंग-गीत के लिए हार्दिक बधाई.

 'कच्छा बनियान बहुत है तुमको'  इस पंक्ति में दो मात्राएँ ज़्यादा हैं.

इस गीत को 'नवगीत' की जगह 'जनगीत' कहना बेहतर होगा.    

सादर 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 22, 2018 at 12:07pm

वास्तविकता का अभिव्यक्ति नव गीत बधाई माँग रहा, मेरी तरफ से ढेर सारी बधाई। "कच्छा बनियान" के स्थान पर "चड्ढी-बंडी" करके देखिए सरसता बढ़ जाएगी।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 22, 2018 at 10:44am

आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 22, 2018 at 10:44am

 आदरणीय Sushil Sarna  जी दिल से शुक्रिया आपका 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
19 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
19 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
19 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
20 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
20 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service